नई दिल्ली. केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के अधिनियम-1991 में संशोधन संबंधी नया बिल पेश किया है। इसका नाम 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन संशोधन विधेयक 2021' है। इसके तहत दिल्ली के एलजी को दिल्ली के कार्यों में बड़ी शक्ति प्रदान की जाएगी। सरकार द्वारा बिल में जो संशोधन प्रस्तावित हैं, उसके अनुसार, दिल्ली में तकरीबन हर निर्णय के लिए LG की राय जरूरी हो जाएगी। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी द्वारा इस विधेयक का विरोध किया गया है और विधेयक को प्रतिगामी, लोकतंत्र विरोधी और दिल्ली के लोगों का अपमान करार दिया है।
आइए आपको बताते हैं GNCT संशोधन बिल में क्या है और उससे दिल्ली पर क्या असर पड़ने वाला है।
संशोधन 1- पहला संशोधन सेक्शन 21 में प्रस्तावित है
इसके मुताबिक विधानसभा कोई भी कानून बनाएगी तो उसमें सरकार का मतलब "उपराज्यपाल' होगा। जबकि जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में चुनी हुई सरकार को ही सरकार माना था।
संशोधन 2- दूसरा संशोधन सेक्शन 24 में प्रस्तावित है।
इस प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक 'उपराज्यपाल ऐसे किसी भी बिल को अपनी मंजूरी देकर राष्ट्रपति के पास विचार के लिए नहीं भेजेंगे जिसमें कोई भी ऐसा विषय आ जाए जो विधानसभा के दायरे से बाहर हो'
(इसका मतलब अब उपराज्यपाल के पास यह पावर होगी कि वह विधानसभा की तरफ से पास किए हुए किसी भी बिल को अपने पास ही रोक सकते हैं जबकि अभी तक विधानसभा अगर कोई विधेयक पास कर देती थी तो उपराज्यपाल उसको राष्ट्रपति के पास भेजते थे और फिर वहां से तय होता था कि बिल मंजूर हो रहा है या रुक रहा है या खारिज हो रहा है)
संशोधन 3- तीसरा संशोधन सेक्शन 33 में प्रस्तावित है
इस प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक, विधानसभा ऐसा कोई नियम नहीं बनाएगी जिससे कि विधानसभा या विधान सभा की समितियां राजधानी के रोजमर्रा के प्रशासन के मामलों पर विचार करें या फिर प्रशासनिक फैसले के मामलों में जांच करें। प्रस्तावित संशोधन में यह भी कहा गया है कि इस संशोधन विधेयक से पहले इस प्रावधान के विपरीत जो भी नियम बनाए गए हैं वह रद्द होंगे।
संशोधन 4- चौथा संशोधन सेक्शन 44 में प्रस्तावित है।
इस प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक 'उपराज्यपाल के कोई भी कार्यकारी फैसले चाहे वह उनके मंत्रियों की सलाह पर लिए गए हो या फिर ना लिए गए हो... ऐसे सभी फैसलों को' उपराज्यपाल के नाम लिया जाएगा। संशोधित बिल में यह भी कहा गया है कि किसी मंत्री या मंत्री मंडल का निर्णय या फिर सरकार को दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करने से पहले उपराज्यपाल की राय लेना आवश्यक होगा।।