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'पॉक्सो एक्ट' का मकसद युवा वयस्कों के बीच सहमति के संबंधों को अपराध बनाना नहीं है: हाईकोर्ट

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने अपने फैसले में कहा, “मेरी राय में पॉक्सो का मकसद 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाना था। इसका इरादा कम उम्र के वयस्कों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना कभी भी नहीं था।”

Edited By: Shashi Rai @km_shashi
Published on: November 14, 2022 13:34 IST
दिल्ली हाई कोर्ट- India TV Hindi
Image Source : फाइल फोटो दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने 'पॉक्सो' एक्ट को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम का मकसद बच्चों को यौन शोषण से बचाना है, लेकिन इसका इरादा कम उम्र के वयस्कों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना कभी भी नहीं था। हालांकि, अदालत ने सचेत किया कि हर मामले से जुड़े तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर संबंध की प्रवृत्ति पर गौर करना जरूरी है, क्योंकि कुछ मामलों में पीड़ित पर समझौता करने का दबाव हो सकता है। उच्च न्यायालय ने 17 साल की किशोरी से शादी करने वाले एक लड़के को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की, जिसे पॉक्सो अधिनियम के तहत हिरासत में लिया गया था। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में लड़की को लड़के के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर नहीं किया गया था।

कोर्ट ने बताया 'पॉक्सो' का मकसद

उच्च न्यायालय ने कहा कि लड़की के बयान से स्पष्ट था कि दोनों के बीच रोमांटिक रिश्ते थे और उनके बीच सहमति से यौन संबंध बने थे। न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने अपने फैसले में कहा, “मेरी राय में पॉक्सो का मकसद 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाना था। इसका इरादा कम उम्र के वयस्कों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना कभी भी नहीं था।” उन्होंने कहा, “हालांकि, हर मामले से जुड़े तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर इस पर गौर करना चाहिए। ऐसे मामले हो सकते हैं, जिसमें यौन अपराध का शिकार व्यक्ति दबाव या प्रताड़ना के कारण समझौता करने के लिए मजबूर हो सकता है।” 

सहमति से बने रिश्ते पर विचार की जरूरत: कोर्ट

अदालत ने कहा कि जमानत देते समय प्यार की बुनियाद पर बने सहमति के रिश्ते पर विचार किया जाना चाहिए और मौजूदा मामले में आरोपी को जेल में परेशान होने के लिए छोड़ देना न्याय का मजाक बनाने जैसा होगा। उच्च न्यायालय ने कहा, “हालांकि, पीड़िता नाबालिग है और इसलिए उसकी सहमति के कोई कानूनी मायने नहीं हैं, लेकिन हमारा मानना ​​है कि जमानत देते समय प्यार की बुनियाद पर बने सहमति के रिश्ते के तथ्यों पर विचार किया जाना चाहिए। मौजूदा मामले में पीड़िता के बयान को नजरअंदाज करना और आरोपी को जेल में परेशान होने के लिए छोड़ देना जानबूझकर न्याय न देने जैसा होगा।”

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