N.V. Ramana: भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश एन.वी.रमण ने रविवार को कहा कि अदालतों को निष्पक्ष होना चाहिए और उसके फैसलों से लोकतंत्र में सुधार होना चाहिए, लेकिन कुछ स्थितियों में अदालतों से विपक्ष की भूमिका निभाने या उसकी जगह लेने की अपेक्षा की जाती है। कैपिटल फाउंडेशन सोसाइटी से न्यायमूर्ति वी आर कृष्ण अय्यर पुरस्कार प्राप्त करने के बाद अपने सम्बोधन में न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि 1960 और 1970 के दशक आधुनिक भारतीय इतिहास में सबसे चुनौतीपूर्ण अवधि थे। उन्होंने कहा, ‘‘इस काल ने संसद और न्यायपालिका के बीच संघर्ष देखा। संसद ने अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए कोशिश की, जबकि सुप्रीम कोर्ट का प्रयास संवैधानिक सर्वोच्चता बरकरार रखने के लिए था।
क्या सुनिश्चित करने में अदालतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
पूर्व CJI ने कहा कि अदालतों ने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है कि संवैधानिक अधिकारों ने अपना अर्थ नहीं खोया है। उन्होंने कहा कि अदालतों ने इस विचार को सुदृढ़ किया है कि न्याय समुदाय के कल्याण के साथ व्यक्तिगत जरूरतों को संतुलित करने की मांग करता है, जिसके फलस्वरूप देश लिखित संविधान द्वारा शासित सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में फल-फूल रहा है। आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पोन्नावरम गांव में एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले न्यायमूर्ति रमण 26 अगस्त को 48वें CJI के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।
पूर्व CJI रमण ने इस विषय पर दिया व्याख्यान
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके पटनायक की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया, जिन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था। न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि उनके लिए ‘भारतीय न्यायपालिका में मेरे अनुभव’ विषय पर व्याख्यान देना उचित नहीं है, क्योंकि वह हाल ही में प्रधान न्यायाधीश के पद से रिटायर हुए हैं। उन्होंने इसके बदले ‘72 वर्षों में भारतीय न्यायपालिका की यात्रा’ विषय पर व्याख्यान दिया।
न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि न्यायपालिका को जनहित याचिका प्रणाली के दुरुपयोग सहित कई सवालों की जांच करने की जरूरत है। उन्होंने न्यायपालिका को बढ़ते मुकदमों सहित विभिन्न उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करने की आवश्यकता भी जताई।