नयी दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) देशद्रोह मामले में मंजूरी में देरी से संबंधित एक याचिका का निपटारा कर दिया। कोर्ट ने कहा, "इस संबंध में हमें नए दिशा-निर्देश बनाने का कोई कारण नजर नहीं आता, क्योंकि पर्याप्त कानून उपलब्ध हैं।" कोर्ट ने सरकार से भी कहा कि वह कानून के अनुसार मंजूरी के मुद्दे पर निर्णय ले। याचिका में ऐसे सभी आपराधिक और भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों के संबंध में तत्काल अभियोजन के लिए दिशा-निर्देश लागू करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया था, जिसमें आरोप गंभीर श्रेणी के हैं और समुदाय पर उसके व्यापक प्रभाव हों।
मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने कहा कि वह इस संबंध में कोई निर्देश नहीं दे सकती और यह दिल्ली सरकार पर निर्भर है कि वह मौजूदा नियमों, नीति, कानून और तथ्यों के अनुसार यह फैसला लें कि मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी दी जाए या नहीं।
अदालत ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता पूर्व भाजपा विधायक नंद किशोर गर्ग की प्राथमिकी में कुछ निजी हित हैं। याचिका में गंभीर प्रकृत्ति के आपराधिक मामलों के त्वरित निस्तारण के लिए दिशा निर्देश देने की मांग की गई है जिसमें बतौर आरोपी प्रभावशाली व्यक्ति शामिल हैं। इस पर अदालत ने कहा कि मौजूदा नियमों के अलावा ऐसे दिशा निर्देश जारी करने के लिए सरकार को निर्देश देने की कोई वजह नजर नहीं आती।
उसने कहा कि इस पर विभिन्न अदालतों ने पर्याप्त संख्या में फैसले दे रखे हैं। वकील शशांक देव सुधी के जरिए दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि कुमार का मामला सरकार के निरुत्साहपूर्ण रुख को दिखाता है क्योंकि वह आरोपपत्र पर संज्ञान लेने से पूर्व आवश्यक मंजूरी पत्र देने में ‘‘नाकाम’’ रही।
पुलिस ने कुमार और पूर्व जेएनयू छात्र उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य समेत अन्यों के खिलाफ अदालत में 14 जनवरी को आरोपपत्र दायर करते करते दावा किया था कि वे नौ फरवरी 2016 को एक कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय परिसर में एक रैली का नेतृत्व कर रहे थे और उन्होंने राष्ट्र विरोधी नारे लगाए थे।