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दिल्ली में प्रतिबंधों के बावजूद दूसरे साल भी बढ़ा प्रदूषण

सीओपीडी फेफड़ों के रोगों का समूह है, जैसे एम्फीसेमा, क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस और रीफ्रैक्टरी (नॉन-रिवर्सिबल) अस्थमा, जिसमें सांस लेने में कठिनाई होती है और सांस गहरी हो जाती है।

Reported by: IANS
Published on: November 21, 2018 6:56 IST
दिल्ली में प्रतिबंधों के बावजूद दूसरे साल भी बढ़ा प्रदूषण- India TV Hindi
दिल्ली में प्रतिबंधों के बावजूद दूसरे साल भी बढ़ा प्रदूषण

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पटाखे चलाने के लिए समय निर्धारित करने, ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध को बढ़ाने, निर्माण, प्रदूषण उद्योगों पर रोक और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने पर प्रतिबंध के बावजूद लगातार दूसरा वर्ष दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर अत्यंत उच्च है। माना जाता है कि लंबी अवधि तक प्रदूषण में रहने से आयु कम होती है, क्योंकि इसका प्रभाव फेफड़ों पर पड़ता है, जिससे क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) का जोखिम रहता है। डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, असंक्रामक रोगों (एनसीडी) के लिए वायु प्रदूषण जोखिम का प्रमुख कारक है। 

सीओपीडी फेफड़ों के रोगों का समूह है, जैसे एम्फीसेमा, क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस और रीफ्रैक्टरी (नॉन-रिवर्सिबल) अस्थमा, जिसमें सांस लेने में कठिनाई होती है और सांस गहरी हो जाती है।

नई दिल्ली स्थित बीएलके सुपर स्पिशीऐलिटी हॉस्पिटल के छाती और श्वसन रोग केंद्र के डायरेक्टर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. संदीप नायर ने कहा, "दिल्ली-एनसीआर के नागरिक एक बार फिर वायु प्रदूषण और स्मॉग से जूझ रहे हैं। प्रदूषण का वर्तमान स्तर मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक है और इसमें लंबे समय तक रहने से श्वसन रोगों का जोखिम हो सकता है, जैसे सीओपीडी।"

उन्होंने कहा, "सीओपीडी का विकास धीमी गति से होता है, लेकिन यह रोग ठीक नहीं होता है और इसके कारण होने वाली मृत्यु की दर उच्च है। रोगियों को लक्षणों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, जैसे पुरानी सूखी खांसी, बलगम वाली खांसी, सांस छोटी होना या जोर से चलना। सीओपीडी के लक्षणों को अस्थमा या अन्य श्वसन रोग नहीं समझना चाहिए, क्योंकि इससे उपचार में विलंब होता है।"

डॉ. संदीप नायर ने बताया कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं सीओपीडी के लिए अधिक प्रवण होती हैं। सीओपीडी से पीड़ित महिलाओं को अधिक क्षति होती है और वह अधिक स्वास्थ्य रक्षा संसाधनों का उपयोग करती हैं। सीओपीडी की महिला रोगियों में अन्य संबद्ध रोगों की संभावना भी उच्च होती है, जैसे व्यग्रता और अवसाद।

मुंबई स्थित हिंदुजा हॉस्पिटल के चेस्ट फीजिशियन कंसल्टेंट डॉ. अशोक महासुर ने कहा, "टायर 1 और 2 शहरों में व्यस्त दिनचर्या वाली अधिकांश कामकाजी महिलाएं धूम्रपान करती हैं या अपने कार्यस्थल पर धूम्रपान की परिधि में आती हैं। उन्हें अक्सर पता नहीं चलता है कि इससे उनके स्वास्थ्य को जोखिम हो सकता है, और ठीक नहीं होने वाले स्थायी रोग हो सकते हैं, जैसे सीओपीडी। पहले सीओपीडी पुरुषों में आम था, लेकिन उच्च आय वाले शहरी क्षेत्रों की महिलाओं में बढ़ते धूम्रपान के चलन से यह रोग अब पुरुष और महिला, दोनों को समान रूप से प्रभावित करता है।"

सीओपीडी का उपचार डॉ. अशोक महासुर ने कहा, "सीओपीडी के रोगियों की लंबे समय तक देखभाल के लिए गहरी सांस की रोकथाम महत्वपूर्ण है। यह रोग जीवन की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करता है और रोग बढ़ने से फेफड़ों की कार्यात्मकता कम होती है गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है और उनकी मृत्यु भी हो सकती है।"

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