नयी दिल्ली। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि दिल्ली भवन और अन्य निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के पास संचित धन के "अनियमित व्यय" के उदाहरण मिले हैं। कैग ने उच्च न्यायालय को बताया कि मार्च 2018 तक बोर्ड के पास 2636.74 करोड़ रुपये की धनराशि जमा थी और उसे श्रमिकों के लिए अधिक कल्याण की खातिर अपने प्रयास बढ़ाने चाहिए। कैग ने एक हलफनामा दायर किया है जिसमें बोर्ड के विभिन्न अंकेक्षण और निरीक्षण रिपोर्ट संलग्न हैं यह हलफनामा एक जनहित याचिका के जवाब में दायर किया गया है।
याचिका में अनुरोध किया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रवासी और निर्माण श्रमिकों के लिए बनाए गए कोष में 3,200 करोड़ रूपए की कथित हेराफेरी की सीबीआई से जांच करायी जाए। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि बोर्ड निर्माण श्रमिकों के लिए और अधिक कल्याणकारी उपायों की खातिर अपने प्रयासों को बढ़ा सकता है ताकि संग्रहित उपकर की राशि का उपयोग उस उद्देश्य के लिए किया जाए जिसके लिए इसे एकत्र किया गया है।
इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि मई 2016 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस पर बोर्ड ने 12.61 लाख रुपये खर्च किए जिसे टाला जा सकता था। इसमें कहा गया है कि आयकर रिटर्न दाखिल करने में देरी और बोर्ड द्वारा अग्रिम कर देनदारी का आकलन करने और उसका निर्वहन करने में विफल रहने के कारण ब्याज के रूप में 4893.79 लाख रुपये का भुगतान किया गया जिससे बचा जा सकता था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि निर्माण श्रमिकों के पंजीकरण व नवीनीकरण के लिए ट्रेड यूनियनों को प्रोत्साहन देने पर 87.06 लाख रुपये का अनियमित व्यय किया गया जिसे वापस लेने की आवश्यकता है।
कैग की यह रिपोर्ट 2016-18 की अवधि के लिए है और इसमें यह भी कहा गया कि 13.17 लाख रुपये का "अनियमित व्यय" किया गया जो निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए था। इस राशि का उपयोग श्रम विभाग के वाहनों और ड्राइवरों के उपयोग के लिए किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि वह राशि वापस वसूल की जानी चाहिए। अदालत मंगलवार को जनहित याचिका पर सुनवाई करेगी जिसे पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति संस्थान ने दायर किया है।