नई दिल्ली: जामिया मिलिया इस्लामिया ने अपने परिसर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को निशाना बनाकर नारे लगाने के प्रति छात्रों को आगाह किया है। विश्वविद्यालय ने कहा है कि किसी भी संवैधानिक और गणमान्य व्यक्ति के खिलाफ किसी भी विरोध प्रदर्शन और धरने की अनुमति नहीं है। इस नियम का उल्लंघन करने पर सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
क्या है पूरा मामला?
रजिस्ट्रार मोहम्मद महता आलम रिज़वी द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन में कहा गया है कि विश्वविद्यालय ने कहा है कि कुछ छात्र भारत के प्रधानमंत्री और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के खिलाफ विश्वविद्यालय के अधिकारियों की अनुमति या सूचना के बिना नारे लगाने में शामिल हैं।
29 नवंबर के ज्ञापन में अगस्त 2022 के एक पुराने निर्देश का उल्लेख किया गया है, जिसमें छात्रों को याद दिलाया गया है कि विरोध और धरने के लिए पूर्वानुमति की आवश्यकता होती है। इसमें दोहराया गया है कि विश्वविद्यालय परिसर के किसी भी हिस्से में किसी भी संवैधानिक गणमान्य व्यक्ति के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन, धरना या नारे लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी, अन्यथा ऐसे दोषी छात्रों के खिलाफ विश्वविद्यालय के नियमों के प्रावधान के अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जाएगी।
इस ज्ञापन का छात्र संगठनों द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है। वाम समर्थित ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए) ने इस निर्देश की आलोचना की है और कहा है कि ये शैक्षणिक संस्थानों पर संघ परिवार की सत्तावादी पकड़ का प्रतिबिंब है।
एक बयान में, AISA ने बड़ा आरोप लगाया कि यह निर्देश केवल छात्रों पर हमला नहीं बल्कि विश्वविद्यालय के सार पर हमला है। अव्यवस्था के साथ असहमति की तुलना करके, प्रशासन द्वारा लोकतांत्रिक आवाजों को दबाने की कोशिश हो रही है जोकि भाजपा की बड़ी परियोजना में उनकी मिलीभगत को उजागर करता है। जामिया छात्रों का है, भाजपा या संघ का नहीं है। (PTI)