नयी दिल्ली: दिल्ली में कोरोना वायरस महामारी के चलते शनिवार को ईद-अल-अजहा के त्यौहार की रौनक फीकी रही। कुर्बानी देने के लिए बकरों की बिक्री बुरी तरह से प्रभावित हुई और लोग घरों के अंदर ही रहे। दिल्ली में कोविड-19 के करीब 10 हजार उपचाराधीन मरीज होने बावजूद स्थिति पहले लगाए अनुमान से बेहतर है और लॉकडाउन के नियमों में भी ढील दी गई है।
इसके बावजूद भी लोगों ने मस्जिदों के बजाय घर पर ईद की नमाज को तरजीह दी। वहीं, जो लोग मस्जिदों में नमाज पढ़ने गये, उन्होंने बताया कि बहुत कम संख्या में लोग हैं और पिछले वर्षों के मुकाबले इस बार लोगों में उतना उत्साह नहीं दिख रहा है। जामा मस्जिद के बाहर दिल्ली पुलिस ने बोर्ड लगाया था, जिसपर लोगों से नमाज पढ़ने के दौरान मास्क पहनने और सामाजिक दूरी का अनुपालन करने का अनुरोध किया गया था।
मस्जिद में नमाज पढ़ने आए इम्तियाज अहमद ने बताया कि इस बार पिछले साल के मुकाबले कम लोग आए हैं, पहले भीड़ इतनी होती थी कि लोगों को सड़क पर नमाज पढ़नी पड़ती थी। उन्होंने बताया कि लोग मास्क पहनकर आए और वे खुद अपनी चटाई नमाज पढ़ने के लिए लेकर आए थे, लोगों ने एक दूसरे से गले मिलने से भी परहेज किया। जामिया नगर के रहने वाले यामीन अंसारी ने अबू फजल एन्क्लेव स्थित जमात-ए-इस्लामी हिंद मरकज में नमाज पढ़ी।
उन्होंने कहा कि मई में मनाए गए ईद-उल-फितर के मुकाबले इस त्यौहार पर कुछ लोग अपने घरों से बाहर निकले, लेकिन इस बार उतना उत्साह नहीं था। उन्होंने कहा, ‘‘ दिल्ली में स्थिति नियंत्रण में है और लोग बाहर आएंगे, लेकिन वे पहले की तरह इस बार उत्साहित नहीं हैं। अंसारी ने कहा कि दोस्त और परिवार के सदस्य त्यौहार के दौरान एक स्थान पर एकत्र होने से बच रहे हैं। पेशे से पत्रकार अब्दुल नूर शिब्ली ने जमात-ए-इस्लामी हिंद में नमाज पढ़ी।
उन्होंने बताया कि गत चार महीने में यह पहला मौका है, जब वह मस्जिद में नमाज पढ़ने आए हैं। शिब्ली ने बताया कि मस्जिद प्रशासन ने प्रवेश द्वारा पर आने वाले नामजियों के शरीर का तापमान जांचने के लिए स्वयंसेवकों की तैनाती की थी। उन्होंने कहा, ‘‘लोग मास्क पहने हुए थे और वे अपने साथ नमाज पढ़ने के लिए चटाई लेकर आए थे। सामाजिक दूरी का अनुपालन करने के लिए फर्श पर स्टिकर लगाए गए थे। इस बार पहले के मुकाबले नमाजियों की संख्या आधी थी।’’
निजामुद्दीन वेस्ट रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष उमर शेख मुहम्मद ने बताया कि उन्होंने नजदीकी मस्जिद में नमाज पढ़ी लेकिन इस बार भीड़ नहीं थी। पेशे से कारोबारी 51 वर्षीय मुहम्मद ने कहा कि कारोबार मंदा होने की वजह से इस बार कुर्बानी के लिये पशु खरीदना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 से कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। पिछले साल जो लोग चार बकरों की कुर्बानी दे सकते थे, इस बार उनके पास एक बकरे तक की कुर्बानी देने के लिए पैसे नहीं हैं।
मुहम्मद ने कहा, ‘‘ महामारी की वजह से पशुओं की खरीद पर लगाई गई पांबदी की वजह से बकरा खरीद कर घर लाना संभव नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बड़ी संख्या में लोग कुर्बानी के लिए पशु नहीं खरीदेंगे क्योंकि महामारी की वजह से उत्पन्न आर्थिक संकट ने उन्हें बेरोजगार बना दिया है।’’ जामा मस्जिद के नजदीक लगने वाले बाजार में बकरा बेचने वाले मोहम्मद इजहार ने कहा कि इस बार बकरीद फीका रहा।
उन्होंने बताया कि हर साल वह 15 से 20 बकरे बेच लेते थे, लेकिन इस बार केवल चार बकरों की ही बिक्री हुई है और उसमें भी घाटा लगा है। उन्होंने कहा, ‘‘ इस महामारी से हमारी जिंदगी को बुरी तरह से प्रभावित किया है। कोरोना वायरस महामारी नहीं होने पर 60 से 70 हजार तक की बकरे बिकते थे लेकिन इस बार उन्होंने आधी कीमत पर बकरे बेच दिये।