लोकसभा में आज गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने दिल्ली सेवा बिल (Delhi Service Bill) पेश किया जिस पर बुधवार को चर्चा होगी। यह बिल दिल्ली में सेवाओं पर कंट्रोल तय करता है, इसे लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवाद है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे लेकर विपक्षी दलों का समर्थन जुटाया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दिल्ली सर्विस बिल संसद में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. की एकता का पहला इम्तिहान होगा। वहीं, दिल्ली सर्विस बिल और विपक्ष के लाए अविश्वास प्रस्ताव पर मोदी सरकार को बीजेडी का भी साथ मिल गया है। बीजेडी के कारण दोनों सदनों में मोदी सरकार के अंकगणित में भी बढ़ोतरी हो जाएगी।
इससे पहले सोमवार को भी केंद्र सरकार लोकसभा में दिल्ली सर्विस बिल पेश करने वाली थी, लेकिन हंगामे के चलते लोकसभा को स्थगित करना पड़ा था इसलिए अब यह आज पेश किया गया। इस बिल का कांग्रेस ने विरोध किया है। पार्टी के सीनियर नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने की कोशिश है।
दिल्ली सर्विस बिल पारित होने से क्या-क्या बदलेगा?
- दिल्ली सर्विस बिल के पास हो जाने से दिल्ली के मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की शक्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी।
- दिल्ली में जो भी अधिकारी कार्यरत होंगे, उनपर दिल्ली सरकार का कंट्रोल खत्म होगा और ये शक्तियां उपराज्यपाल के जरिए केंद्र के पास चली जाएंगी।
- दिल्ली सेवा बिल में नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी बनाने का प्रावधान है। दिल्ली के मुख्यमंत्री इसके अध्यक्ष होंगे।
- अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्य सचिव एक्स ऑफिशियो सदस्य, प्रिसिंपल होम सेक्रेटरी मेंबर सेक्रेटरी होंगे।
- अथॉरिटी की सिफारिश पर LG फैसला करेंगे, लेकिन वे ग्रुप-ए के अधिकारियों के बारे में संबधित दस्तावेज मांग सकते हैं।
- अगर अथॉरिटी और एलजी की राय अलग-अलग होगी तो एलजी का फैसला ही अंतिम माना जाएगा।
बता दें कि दिल्ली सर्विस बिल 19 मई को जारी किए अध्यादेश की हुबहू कॉपी नहीं है। इसमें तीन प्रमुख संशोधन किए गए हैं। बिल से सेक्शन 3 A को हटा दिया गया है। इसमें दिल्ली विधानसभा को सेवाओं संबंधित कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया गया था। इसकी जगह बिल में आर्टिकल 239 AA पर जोर है, जो केंद्र को नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी (NCCSA) बनाने का अधिकार देता है। पहले अथॉरिटी को अपनी गतिविधियों की एनुअल रिपोर्ट दिल्ली विधानसभा और संसद दोनों को देने की बात थी लेकिन अब इस प्रावधान को भी हटा दिया गया है।
19 मई को अध्यादेश लेकर आई थी केंद्र सरकार
गौरतलब है कि केंद्र सरकार 19 मई को एक अध्यादेश लेकर आई थी। इस अध्यादेश के जरिए दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार फिर से उपराज्यपाल को दे दिया गया है। यानी दिल्ली सरकार अगर किसी अधिकारी का ट्रांसफर करना चाहती है, तो उसे उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी। अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अध्यादेश से जुड़े बिल को संसद में पास कराना है, क्योंकि तभी यह कानून का शक्ल ले पाएगा।
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