नयी दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता बृहस्पतिवार को आठ महीनों में सबसे निचले स्तर पर रही। शहर के पीएम 2.5 स्तर में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी केवल छह प्रतिशत रही। नासा के उपग्रह द्वारा ली गई तस्वीरों में पंजाब के अमृतसर, पटियाला, तरनतारन और फिरोजपुर तथा हरियाणा के अंबाला और राजपुरा में बड़े पैमाने पर खेतों में पराली जलाए जाने का पता चला है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पंजाब सरकार से पराली जलाने पर रोक लगाने का आग्रह किया।
हालांकि, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता प्रणाली एवं मौसम पूर्वानुमान अनुसंधान इ्ईकाई (सफर) ने कहा कि हवा की दिशा पराली के धुएं को लाने के लिए आंशिक रूप से अनुकूल है और इसलिए पीएम 2.5 के स्तर में इसकी हिस्सेदारी बढ़ने के आसार हैं।
दिल्ली में 24 घंटे का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 312 रहा। इस साल इससे पहले हवा की गुणवत्ता का इतना खराब स्तर फरवरी में था। चौबीस घंटे का औसत एक्यूआई बुधवार को 276 था, जो 'खराब' श्रेणी में आता है। यह मंगलवार को 300, सोमवार को 261, रविवार को 216 और शनिवार को 221 था। शून्य और 50 के बीच एक्यूआई को 'अच्छा', 51 और 100 के बीच 'संतोषजनक', 101 और 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 और 300 'खराब', 301 और 400 के बीच 'बहुत खराब' और 401 और 500 के बीच 'गंभीर' माना जाता है।
सफर के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली के पीएम 2.5 के स्तर में पराली जलाने की हिस्सेदारी बृहस्पतिवार को करीब छह फीसदी थी। यह बुधवार को एक प्रतिशत, मंगलवार, सोमवार और रविवार को करीब तीन प्रतिशत थी। भारत मौसम विज्ञान विभाग के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि हवा की दिशा उत्तर पश्चिम है और वायु गति 15 किलोमीटर प्रति घंटा है जो पराली जलाने से उत्पन्न होने वाले धुएं को ले जा सकने के लिए अनुकूल है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी रोजाना बदलती है।
मंत्रालय ने ट्वीट किया, "पिछले साल आठ अक्टूबर से नौ दिसंबर के बीच (सफर के आंकड़ों के अनुसार) दिल्ली के प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी छह दिनों तक 15 फीसदी से ज्यादा थी, जबकि एक दिन यह 40 प्रतिशत से अधिक रही।" दिल्ली-एनसीआर में पीएम10 का स्तर बृहस्पतिवार शाम पांच बजे 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक बढ़ गया जो इस मौसम में अबतक सबसे ज्यादा है। भारत में पीएम10 का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से नीचे सुरक्षित माना जाता है।