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सिख विरोधी दंगे: 6 आरोपियों को बरी करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर होगी याचिका, दिल्ली के एलजी ने मंजूरी

1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में 6 आरोपियों को बरी करने के दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाएगी। कोर्ट में अपील करने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल ने मंजूरी दे दी है।

Edited By: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Published : Nov 25, 2023 19:24 IST, Updated : Nov 25, 2023 19:24 IST
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Image Source : FILE PHOTO दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के सक्सेना

दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के सक्सेना ने 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में छह आरोपियों को बरी करने के दिल्ली हाई कोर्ट के 10 जुलाई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने को अपनी मंजूरी दे दी है। उपराज्यपाल कार्यालय के अधिकारियों ने कहा कि सक्सेना ने मामले में कथित "संवेदनहीन देरी" के लिए दिल्ली सरकार के अभियोजन विभाग की आलोचना की। उन्होंने बताया कि उपराज्यपाल ने गृह विभाग को देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान करने और उनकी जवाबदेही तय करने का निर्देश दिया और सात दिन के भीतर रिपोर्ट मांगी। 

हाईकोर्ट ने मामले में बताई थी "28 साल की अत्यधिक देरी"

दरअसल, यह मामला उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के सरस्वती विहार थाना (अब सुभाष प्लेस) क्षेत्र में सिख विरोधी दंगों के दौरान लूटपाट और दंगे से संबंधित है, जिसमें 6 आरोपी- हरिलाल, मंगल, धर्मपाल, आज़ाद, ओमप्रकाश और अब्दुल हबीब शामिल थे। अधिकारियों ने कहा, “उपराज्यपाल ने हाई कोर्ट के 10 जुलाई 2023 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका दायर करने के गृह विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा सभी आरोपियों को बरी करने के खिलाफ सरकार की अपील खारिज कर दी थी।” अधिकारियों के मुताबिक, उच्च न्यायालय ने कहा था कि निचली अदालत के 28 मार्च 1995 फैसले के खिलाफ अपील दायर करने में 28 साल की "अत्यधिक देरी" के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं था और राज्य सरकार की ओर से बताए गए आधार "उचित नहीं" थे। 

"आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई"

उपराज्यपाल सक्सेना ने इससे पहले नांगलोई थाने में दर्ज सिख विरोधी दंगों से जुड़े अन्य मामले में 12 लोगों को बरी करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने को मंजूरी दे दी थी। अधिकारियों ने बताया कि उपराज्यपाल ने मौजूदा मामले के घटनाक्रम को देखने के बाद रेखांकित किया कि दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील दायर करने के लिए मंजूरी दिसंबर 2020 में दी गई थी, लेकिन इसे दो साल से ज्यादा वक्त की देरी के बाद 2023 में दायर किया गया। अधिकारियों के मुताबिक, सक्सेना ने कहा कि यह ''गंभीर चिंता'' का विषय है कि ''मानवता के खिलाफ अपराध'' के ऐसे मामलों से ''बहुत ही लापरवाही और साधारण तरीके'' से निपटा जाता है जिससे अपील दायर करने में ''अत्यधिक देरी'' होती है। उपराज्यपाल ने कहा कि ऐसे मामलों में "अत्यधिक देरी" को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। 

क्या है मामला?

अधिकारियों ने कहा कि 11 जनवरी 2018 को अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने 1984 के दंगों से संबंधित 186 मामलों के संबंध में आगे की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया और मौजूदा मुकदमा इन मामलों का एक हिस्सा था। 9 फरवरी 2018 को एक अधिसूचना के माध्यम से दंगों से संबंधित मामलों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया था जिसमें न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एसएन ढींगरा और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी अभिषेक शामिल थे। एसआईटी ने 15 अप्रैल 2019 को अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वर्तमान मामले में अभियोजन पक्ष को फैसले के तुरंत बाद अपील दायर करनी चाहिए थी। अधिकारियों ने कहा कि एसआईटी ने यह भी सिफारिश की थी कि देरी के लिए माफी के आवेदन के साथ अपील दायर की जा सकती है। 

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