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हाई कोर्ट के आदेश के बाद DDA की टीम शाही ईदगाह पहुंची, रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति के लिए कब्जे में लेगी जमीन

दिल्ली हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह पर अतिक्रमण न करने के लिए निकाय प्राधिकारों को निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि यह एक वक्फ संपत्ति है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि शाही ईदगाह के आसपास के पार्क या खुले मैदान DDA की संपत्ति हैं।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published on: September 25, 2024 15:35 IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने...- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO दिल्ली हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह पार्क मामले में सुनाया फैसला।

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने सदर बाजार स्थित शाही ईदगाह पार्क में झांसी की रानी की प्रतिमा स्थापित करने पर रोक लगाने के अनुरोध वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने केस खारिज करते हुए कहा था कि इसमें कोई ठोस आधार नहीं है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद DDA झांसी की रानी की प्रतिमा की खातिर जमीन कब्जे में करने के लिए बुधवार को शाही ईदगाह पहुंच गया। पूरी कार्रवाई को अंजाम देने के लिए भारी मात्रा में पुलिस फोर्स की तैनाती की गई।

क्या कहा था कोर्ट ने?

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता शाही ईदगाह (वक्फ) प्रबंध समिति को दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा शाही ईदगाह के आसपास के पार्क या खुले मैदान के रखरखाव का विरोध करने और इस प्रकार दिल्ली नगर निगम (MCD) द्वारा उसके आदेश पर प्रतिमा की स्थापना का विरोध करने का कोई कानूनी या मौलिक अधिकार नहीं है। जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा,‘अगर यह मान भी लें कि याचिकाकर्ता के पास रिट याचिका दायर करने का अधिकार है, तो भी इस अदालत को यह नहीं लग रहा कि किस तरह से उनके नमाज अदा करने या किसी भी धार्मिक अधिकार का पालन करने के अधिकार को किसी भी तरह से खतरे में डाला जा रहा है।’

वक्फ संपत्ति का दावा किया गया खारिज

जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा, ‘यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग द्वारा यथास्थिति बनाए रखने का आदेश स्पष्ट रूप से किसी अधिकार क्षेत्र से परे था।’ अदालत ने शाही ईदगाह पर अतिक्रमण न करने के लिए निकाय प्राधिकारों को निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि यह एक वक्फ संपत्ति है। समिति ने 1970 में प्रकाशित एक गजट अधिसूचना का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि शाही ईदगाह पार्क मुगल काल के दौरान निर्मित एक प्राचीन संपत्ति है, जिसका उपयोग नमाज अदा करने के लिए किया जा रहा है।

कोर्ट ने अपने फैसले में और क्या कहा?

समिति ने गजट अधिसूचना के हवाले से यह भी कहा कि इतने बड़े परिसर में एक समय में 50,000 से अधिक लोग नमाज अदा कर सकते हैं। अदालत ने हाई कोर्ट की एक बेंच द्वारा पारित आदेश का हवाला दिया और कहा कि निर्णय में यह भी स्पष्ट किया गया कि शाही ईदगाह के आसपास के पार्क या खुले मैदान DDA की संपत्ति हैं और इनका रखरखाव DDA के बागवानी प्रभाग-दो द्वारा किया जाता है।

अदालत ने कहा, ‘इसके अलावा, दिल्ली वक्फ बोर्ड (DWB) भी धार्मिक गतिविधियों के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए पार्क के उपयोग को अधिकृत नहीं करता है। मूल बात यह है कि, चूंकि शाही ईदगाह से सटे और ईदगाह की दीवारों के भीतर स्थित पार्क/खुला मैदान DDA की संपत्ति है, इसलिए यह पूरी तरह से DDA की जिम्मेदारी है कि वह जैसा उचित समझे उक्त भूमि के कुछ हिस्सों को सार्वजनिक उपयोग के लिए आवंटित करे।' (भाषा इनपुट्स के साथ)

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