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दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल सरकार को जारी किया नोटिस, वक्फ बोर्ड के इमामों की सैलरी से जुड़ा है मामला

केजरीवाल सरकार को दिल्ली हाईकोर्ट ने एक नोटिस जारी किया है, ये नोटिस वक्फ बोर्ड के इमामों की सैलरी से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किया गया है।

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Updated on: March 21, 2024 14:49 IST
Delhi high court- India TV Hindi
Image Source : PTI दिल्ली हाईकोर्ट

केजरीवाल सरकार की मुसीबतें हैं कि कम होने का नाम नहीं ले रही हैं, पहले ईडी के समन ने मुख्यमंत्री को परेशान कर रखा था और अब एक अन्य मामले को लेकर हाईकोर्ट ने सरकार को एक नोटिस जारी किया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने आज गुरुवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड और गैर वक्फ बोर्ड के इमामों और मुअज्जिनों को सैलरी और मानदेय जारी करने के लिए राज्य की कंसोलिडेटेड फंड का इस्तेमाल करने की दिल्ली सरकार की पॉलिसी को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया।

हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

लाइव लॉ की खबर के मुताबिक, हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की बेंच ने दिल्ली सरकार के फाइनेंस और प्लानिंग डिपार्टमेंट और दिल्ली वक्फ बोर्ड से इस पर अपना जवाब देने को कहा है। यह याचिका वकील और सामाजिक कार्यकर्ता रुक्मणि सिंह ने दायर की है, जिसमें दिल्ली सरकार और वक्फ बोर्ड को बोर्ड और गैर वक्फ बोर्डों के इमामों और मुअज्जिनों को कंसोलिडेटेड फंड से सैलरी देने से रोकने की मांग की गई है। कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर सरकार विचार करने की जरूरत है। इस मामले की सुनवाई अब जुलाई में होनी है।

दिल्ली सरकार के वकील संतोष कुमार त्रिपाठी के मौखिक अनुरोध के बाद पीठ ने दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग को भी जनहित याचिका में प्रतिवादी पक्ष के रूप में शामिल किया।

क्या कहा गया याचिका में? 

सिंह की याचिका में कहा गया है कि दिल्ली सरकार एक विशेष धार्मिक समुदाय के कुछ व्यक्तियों को अन्य धार्मिक समुदाय के समान श्रेणी के व्यक्तियों की वित्तीय स्थिति पर विचार किए बिना सम्मान राशि देने की यह प्रथा सीधे राज्य की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति का उल्लंघन करती है। साथ ही यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15(1) और 27, 266 और 282 का भी उल्लंघन करती है।

नहीं किया जा सकता फंड से विशेष समुदाय को भुगतान 

आगे कहा गया कि यह जनहित याचिका ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानती है जिसमें यह माना गया था कि इमामों को भुगतान करने के लिए संसाधनों का उपयोग करना वक्फ बोर्ड का कर्तव्य है जो उनके समाज में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी नंबर 1 राज्य का कार्य संवैधानिक सिद्धांतों के साथ-साथ भारत के सुप्रीम कोर्ट फैसले के भी खिलाफ है। साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य के कंसोलिडेटेड फंड से किसी धर्म के एक विशेष समुदाय को भुगतान नहीं किया जा सकता है।

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