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20 महीने की धनिष्ठा ने दी 5 लोगों को नई जिंदगी, बनी सबसे कम उम्र की डोनर

दिल्ली के रोहिणी की रहने वाली दिल्ली की 20 महीने की बच्ची धनिष्ठा ने मिसाल कायम की है। धनिष्ठा अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन जाते जाते भी उसने पांच लोगों की जिंदगी संवार दी।

Reported by: Vijai Laxmi @vijai_laxmi
Published : January 14, 2021 14:44 IST
20 महीने की धनिष्ठा ने...
Image Source : INDIA TV 20 महीने की धनिष्ठा ने दी 5 लोगों को नई जिंदगी, बनी सबसे कम उम्र की डोनर

नई दिल्ली: कहते हैं खुशियां बांटनी चाहिए और बच्चे तो खुशियां बांटने के लिए आते हैं। रोहिणी की रहने वाली दिल्ली की 20 महीने की बच्ची धनिष्ठा ने मिसाल कायम की है। धनिष्‍ठा अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन जाते जाते भी उसने पांच लोगों की जिंदगी संवार दी। वह सबसे कम उम्र की कैडेवर डोनर भी बन गई है। इसने अपने शरीर के पांच अंगों को दान किया है जिससे 5 मरिजों को नया जीवन मिलेगा। धनिष्ठा का हृदय, लिवर, दोनों किडनी और दोनों कॉर्निया सर गंगा राम अस्पताल में डोनेट किया गया और इसके बाद  5 अलग अलग रोगियों में इन्‍हें प्रत्यारोपित किया गया है।

बता दें कि कैडेवर डोनर (Cadaver Donor) उसे कहते हैं जो शरीर के पांच जरूरी अंगों का दान करता है। ये अंग दिल, लिवर, दोनों किडनी और आंखों की कॉर्निया हैं। कैडेवर डोनर होने के लिए जरूरी है कि मरीज ब्रेन डेड हो और इसके लिए परिजनों की अनुमति चाहिए होती है। आमतौर पर दानदाता और रिसीवर का नाम गोपनीय रखा जाता है लेकिन परिजन चाहे तो दानदाता का नाम उजागर भी कर सकता है।

8 जनवरी की शाम को धनिष्ठा अपने घर की पहली मंजिल पर खेलते हुए नीचे गिर गई और बेहोश हो गई। परिजन उसे तुरंत सर गंगा राम अस्पताल लेकर गए लेकिन डॉक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद बच्ची को बचाया नहीं जा सका। 11 जनवरी को धनिष्ठा को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया लेकिन दिमाग के अलावा उसके सारे अंग सही से काम कर रहे थे। शोकाकुल होने के बावजूद बच्ची के परिजनों पिता आशीष कुमार और मां बबीता कुमारी ने अस्पताल के अधिकारियों से अपनी बच्‍ची के अंगदान की इच्छा जाहिर की। जिसके बाद धनिष्ठा का दिल, लिवर, दोनों किडनी और कॉर्निया सर गंगाराम अस्पताल ने निकाल कर पांच रोगियों में प्रत्यारोपित कर दिया।

धनिष्ठा के पिता आशीष कुमार ने बताया कि अस्पताल में रहते हुए हमने कई ऐसे मरीज देखे जिन्हें अंगों की सख्त आवश्यकता है। हालांकि हम अपनी धनिष्ठा को खो चुके थे लेकिन हमने सोचा कि अंगदान से न सिर्फ उन मरीजों को नया जीवन मिलेगा, हमारी बच्‍ची की यादें भी इसके जरिए इस दुनिया में रहेंगी।

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