नयी दिल्ली: कोविड-19 से जान गंवाने वालों के अंतिम संस्कार किए जाने की सुविधाओं के अभाव और शवगृह में शवों की बहुतायत की खबरों का स्वत: संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को इस पूरे मामले पर दुख जताया और इस मुद्दे से निपटने के लिए जनहित याचिका के तहत सुनवाई शुरू की। अदालत ने कहा कि अगर यह वास्तविक हालात है तो ''यह बेहद असंतोषजनक और मृतक के अधिकारों का उल्लंघन है।''
न्यायामूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ और न्यायामूर्ति आशा मेनन की खंडपीठ ने कहा कि दिल्ली के नागरिक होने के नाते बृहस्पतिवार को अखबारों में आयी खबरों से उन्हें पीड़ा हुई और वे विचलित हुए। पीठ ने खबरों का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली के लोक नायक अस्पताल में कोविड-19 के शवगृह में 108 लाश हैं, जिनमें से 28 फर्श पर एक-दूसरे के ऊपर ही पड़ी हैं क्योंकि केवल 80 शव रखे जाने की ही व्यवस्था है। उच्च न्यायालय ने खबरों में पाया कि विशेष रूप से कोविड-19 के मरीजों के लिए तय किया गया यह शहर का सबसे बड़ा अस्पताल है और इसके शवगृह में कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वालों अथवा संक्रमण के संदिग्ध मरीजों के शव रखे गए हैं।
खबरों में यह भी बताया गया है कि 26 मई को निगम बोध घाट से आठ शव को अंतिम संस्कार किए बिना ही लौटा दिया गया क्योंकि इसके आठ सीएनजी शवदाह गृह के दो ही हिस्से काम कर रहे थे और यह अधिक शवों का अंतिम संस्कार करने की सुविधा उपलब्ध कराने में असमर्थ था। खबरों का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा, '' जिन लोगों की पांच दिन पहले ही मौत हो चुकी है, उनका अब तक अंतिम संस्कार नहीं किया जा सका है। अंतिम संस्कार के लिए शव इसलिए जमा होते जा रहे हैं क्योंकि निगम बोध घाट और पंजाबी बाग श्मशान घाट के सीएनजी शवदाह गृह काम नहीं कर पा रहे हैं।''
पीठ ने कहा, '' इस तरह हम उपरोक्त मानवाधिकार उल्लंघन के अपराध का स्वत: संज्ञान लेते हैं और इस आदेश के जरिए इस स्थिति को मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाते हैं ताकि इस मामले में जनहित के तहत उचित निर्देश जारी किए जा सकें।'' पीठ ने निर्देश दिया कि आदेश की प्रति मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल के समक्ष पेश की जाए और साथ ही मामले में जवाब के लिए दिल्ली सरकार के वकील रमेश सिंह के साथ-साथ तीनों निगम के वकीलों को भी प्रति भेजी जाए। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार के लिए तय की।