नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मुश्किलों में दिन-ब-दिन इजाफा होता जा रहा है। CBI ने फीडबैक यूनिट मामले (FBU) में सिसोदिया समेत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सलाहकार गोपाल मोहन पर FIR दर्ज की है। FIR के मुताबिक, FBU केस में सिसोदिया समेत 6 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। इन सभी के खिलाफ 120B, 403,468,471,477 IPC और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है।
FIR में है इन लोगों के नाम
CBI द्वारा दर्ज FIR में नई दिल्ली के तत्कालीन विजिलेंस सेक्रेटरी सुकेश कुमार जैन, CISF के रिटायर्ड DIG और फीडबैक यूनिट के जॉइंट डायरेक्टर एवं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के विशेष सलाहकार सुकेश कुमार जैन, रिटायर्ड जॉइंट डिप्टी डायरेक्टर प्रदीप कुमार पुंज (डिप्टी डायरेक्टर FBU), CISF के रिटायर्ड असिस्टेंट कमांडेंट सतीश खेत्रपाल (फीड बैक ऑफिसर), गोपाल मोहन (दिल्ली के मुख्यमंत्री के सलाहकार) एवं अन्य के नाम हैं। ऐसे में देखा जाए तो पूरी की पूरी फीडबैक यूनिट ही सवालों के घेरे में आ गई है।
आइए, जानते हैं इस केस की A से लेकर Z तक की कहानी:
2016 में ही शुरू हो गई थी जांच
बता दें कि भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ भ्रष्ट्राचार का मामला दर्ज कर जांच करने की मंजूरी दी थी। ये मंजूरी दिल्ली सरकार की फीडबैक यूनिट (FBU) के गठन और उसमें की गयी अवैध नियुक्तियों में हुये भ्रष्ट्राचार को लेकर की गयी थी। इस मामले में CBI ने नवंबर 2016 में FIR दर्ज कर अपनी जांच शुरू की थी और पाया था कि इस यूनिट को बनाने में भ्रष्टाचार किया गया है और नियमों को ताक पर रख कर इसका गठन किया गया है। ये जांच CBI ने तत्कालीन डिप्टी सेक्रेटरी विजिलेंस दिल्ली सरकार के. एस. मीणा की शिकायत पर की थी।
कैबिनेट मीटिंग में हुआ था FBU के गठन का फैसला
दिल्ली सरकार ने फरवरी 2016 में अपने अधीन काम करने वाले कर्मचारियों के भ्रष्टाचार और कामकाज पर नजर रखने के लिये Feed Back Unit का गठन किया था। 29 सितंबर 2015 को हुई दिल्ली सरकार की कैबिनेट मीटिंग में FBU के गठन को मंजूरी दी गयी थी। उसके बाद तत्कालीन विजिलेंस सेक्रेटरी ने 28 अक्टूबर 2015 को दिल्ली के मुख्यमंत्री को FBU के गठन का प्रपोजल दिया जिसे मंजूर कर लिया गया था। इस यूनिट में शुरूआत में 20 भर्तियां की जानी थीं जिसके लिये दिल्ली सरकार के उद्योग विभाग की 22 पोस्ट को खत्म किया जाना था, लेकिन बाद में दिल्ली सरकार की एंटी करप्शन ब्यूरो की 88 पोस्ट में से 20 भर्तियां FBU में करने की बात हुई, क्योंकि ACB भी विजेलेंस विभाग के अधीन काम करता है। हालांकि ACB में जिन 88 पोस्ट को भरने की बात की जा रही थी उसका भी सिर्फ प्रपोजल था, उसके लिए उपराज्यपाल की तरफ से मंजूरी नहीं ली गयी थी।
FBU के गठन में उड़ी थी नियमों की धज्जियां
भारत सरकार के गृह मंत्रालय की तरफ से जारी 3 चिट्ठियों से यह साफ है कि दिल्ली में किसी भी नई भर्ती, पोस्ट का गठन या फिर रिटायर्ड कर्मचारियों की भर्ती के लिये LG की मंजूरी जरूरी है, लेकिन इसके बावजूद इसकी अनदेखी की गयी। दिल्ली के मुख्यमंत्री के सचिव ने 29 अप्रैल 2015 को चिट्ठी लिखी थी कि दिल्ली से जुड़े मामलों को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बिना उपराज्यपाल को बताये फैसला ले सकते हैं, लेकिन यह मामला दिल्ली हाइकोर्ट में चल रहा था और इसका कोई फैसला नहीं हुया था। इसके बाद जब 4 अगस्त 2016 को हाइकोर्ट का फैसला आया तो फीडबैक यूनिट की मंजूरी के लिये दिल्ली सरकार की तरफ से LG को फाइल भेजी गयी, लेकिन उन्होंने इस मामले में नियमों की अवहेलना की बात करते हुए मामले को CBI जांच के लिए भेज दिया।
बगैर मंजूरी लिए ही शुरू हो गई थी भर्ती
CBI ने अपनी शुरूआती जांच में पाया कि यूनिट में भर्ती के लिये तत्कालीन विजिलेंस सेक्रेटरी सुकेश कुमार जैन ने 6 नवंबर 2015 को मनीष सिसोदिया को प्रपोजल दिया कि AR Department (पूरे खर्चे का ब्योरा) से मंजूरी ले ली जायेगी। मनीष सिसोदिया ने इस पर सहमति दी लेकिन सुकेश कुमार जैन ने इसकी जानकारी AR Department को दी ही नहीं। विजिलेंस विभाग के अधिकारी ने जांच के दौरान बताया कि भर्तियों के लिये आवेदन जारी करने के बाद इसकी जानकारी AR Department को दी गयी लेकिन कहा गया कि ये भर्तियां उद्योग विभाग में खत्म की जा रही पोस्ट की जगह होगी। लेकिन 25 जनवरी 2016 में तय किया गया कि ये भर्तियां ACB में की जाने वाली 88 भर्तियों में से की जायेंगी जबकि इन भर्तियों की मंजूरी नहीं ली गयी थी। इस बात की जानकारी मनीष सिसोदिया को भी थी कि इन भर्तियों के लिये या यूनिट के गठन के लिये उपराज्यपाल से कोई मंजूरी नहीं ली गयी है।
कुछ ही दिन में बदल दिए गए FBU के डिप्टी डायरेक्टर
शुरुआती जांच में यह भी पता चला की इस यूनिट के लिये 17 लोगों को भर्ती किया गया और 1 करोड़ का बजट रखा गया था। साल 2016-17 में 2 बार में 5-5 लाख कर के 10 लाख रुपये 7 जून 2016 और 13 जून 2016 में यूनिट को दिये गये। शुरुआत में 20 मई 2016 को आदेश जारी कर ACB के शम्स अफरोज को इस यूनिट के एडमिन और फाइनेंस के डिप्टी डायरेक्टर की जिम्मेदारी दी गयी जो उन्हे एंटि-करप्शन ब्यूरो में ACP की जिम्मेदारी के साथ-साथ पूरी करनी थी। हालांकि कुछ ही दिनों बाद 31 मई 2016 को नया आदेश जारी किया गया कि मुख्यमंत्री के तत्कालीन एडवाइजर आर. के. सिन्हा इस यूनिट के मुखिया के तौर पर जिम्मेदारी संभालेगे। इसके बाद जब शम्स अफरोज ने यूनिट में गलत तरीकों से खर्चों को लेकर बात की तो आर. के. सिन्हा ने चिट्ठी लिख कर कहा कि शम्स अफरोज का इस यूनिट से कोई मतलब नहीं है और उन्हे SS फंड्स की जानकारी ना दी जाये।
जांच में फर्जी पाए गए भुगतान के बिल
CBI ने अपनी शुरूआती जांच में पाया की SS Fund से 1.5 लाख रुपये 'सिल्वर शील्ड डिटेक्टिव्स' को दिये गये और 60 हजार W.W. Security को देने की बात की गई और वह भी SS Fund से पैसे सतीश खेतरपाल को जारी होने के अगले ही दिन। जांच में पाया गया कि ये बिल फर्जी हैं और इन दोनों को किसी तरह का भुगतान नहीं किया गया और न ही इन दोनों ने इस यूनिट या दिल्ली सरकार के लिये कोई काम किया। हालांकि M/s Silver Shield Detectives के पार्टनर ने जांच में यह कहा कि कंपनी से फीड बैक यूनिट के ज्वाइंट डायरेक्टर आर. के. सिन्हा ने किसी महिला की जानकारी और उनके पीछा करने की बात की थी लेकिन इससे ज्यादा कोई बात नहीं हुयी।
डाटा एंट्री ऑपरेटर की सैलरी पर फंसी बात
इसके अलावा 20 दिसंबर 2016 को मनीष सिसोदिया ने तत्कालीन सेक्रेटरी विजेलेंस अश्वनी कुमार से फीडबैक यूनिट में काम करने वाले डाटा एंट्री ऑपरेटर की सैलरी देने की बात कही जो अगस्त से रूकी हुयी थी, और इसे 3 दिन में पूरा कर जवाब देने के लिये कहा। इसके बारे में अश्वनी कुमार (विजिलेंस सेक्रेटरी) ने फाइल पर लिख कर कहा कि इन कर्मचारियों के आउटपुट के बारे में जानकारी मांगी गयी है लेकिन अभी तक कोई जवाब नही आया। इसके बाद मनीष सिसोदिया ने लिखा कि क्या इन कर्मचारियों की सैलरी रोकने के बारे में उपराज्यपाल के दफ्तर से कहा गया है और अगर नहीं तो सैलरी जारी की जाए। CBI ने अपनी जांच में इसे निहित स्वार्थ (Vested Interested) माना है।
...और इस तरह मिल गई FBU को बंद करने की मंजूरी
इस फीड बैक यूनिट ने अपने कार्यकाल के दौरान 60 प्रतिशत विजिलेंस से जुड़े मामलों में जानकारी जुटाई जबकि 40 प्रतिशत राजनीति से जुड़े मामलों में जानकारी जुटाई। हालांकि किसी मामले में इस यूनिट से जारी जानकारी पर कार्रवाई नहीं हुयी। यानी जिस मकसद के लिये इसका गठन किया गया था उसके बदले इसका आम आदमी पार्टी और मनीष सिसोदिया के फायदे के लिये राजनितिक इस्तेमाल किया गया। इसके गठन में मनीष सिसोदिया ने तत्कालीन सेक्रेटरी विजिलेंस सुकेश कुमार जैन के साथ मिल कर अहम भूमिका निभाई थी। दिल्ली सरकार के तत्कालीन विजिलेंस सेक्रेटरी ने 26 सितंबर 2016 को फीड बैक यूनिट के ज्वाइंट डाय्रेक्टर आर. के. सिन्हा को चिट्ठी लिख कर यूनिट के बारे में जवाब मांगा था लेकिन कोई जवाब न आने पर विजिलेंस विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी के. एस. मीणा ने उसी दिन शाम 5 बजे विजिलेंस सेक्रेटरी को चिट्ठी लिख कर यूनिट को बंद करने के लिये कहा, जिसके बाद सेक्रेटरी ने इसे बंद करने की मंजूरी दी।
CBI ने अपनी जांच में पाई थीं ये गड़बड़ियां
इस तरह देखा जाए तो सीबीआई ने अपनी शुरूआती जांच में पाया कि इस यूनिट का गठन नियमों को ताक पर रख कर किया गया, उपराज्यपाल से जरूरी मंजूरी नहीं ली गयी, अपने विभाग के मुखिया विजेलेंस सेक्रेटरी को कभी रिपोर्ट या जरूरी जानकारी नहीं दी गयी, सीक्रेट फंड का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया और फर्जी बिल बनाये गये। इसकी वजह से सरकार को 36 लाख रुपये का नुकसान हुआ। इसी के बाद CBI ने मनीष सिसोदिया(तत्कालीन उपमुख्यमंत्री), सुकेश कुमार जैन (तत्कालीन सेक्रेटरी विजिलेंस), आरके सिन्हा (स्पेशल एडवाइजर मुख्यमंत्री और ज्वाइंट डायरेक्टर फीड बैक यूनिट), प्रदीप कुमार पुंज (डिप्टी डायरेक्टर फीड बैक यूनिट), सतीश खेतरपाल (फीड बैक ऑफिसर) और गोपाल मीणा (एडवाइजर एंटी करप्शन-मुख्यमंत्री) के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच की सिफारिश की थी।