नयी दिल्ली: त्योहारी सीजन और बढ़ती ठंड के बीच दिल्ली में कोरोना संक्रमण हर दिन नए रेकॉर्ड बना रहा है। बुधवार को पहली बार दिल्ली में कोरोना के 8 हजार से ज्यादा नए केस सामने आए। नवंबर में कोरोना की दिल्ली में यह रफ्तार बहुत डराने वाली है। हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में बीते 15 दिन में कोविड-19 से 870 से अधिक लोगों की मौत हुई है। दिल्ली में 28 अक्टूबर के बाद से कोविड-19 के मामलों में अचानक उछाल देखा गया है। उस दिन राजधानी में पहली बार एक दिन में पांच हजार से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए थे।
दिल्ली में 28 अक्टूबर से 11 नवंबर के बीच संक्रमण के 90,572 नए मामले सामने आए हैं जबकि 872 लोगों की मौत हुई है। बीते दो दिन में रोजाना 80 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। राजधानी में बुधवार को एक दिन में कोरोना वायरस संक्रमण के सबसे अधिक 8,593 मामले सामने आए, जिसके बाद संक्रमितों की कुल संख्या 4 लाख 59 हजार से अधिक हो गई। इसके लिये विशेषज्ञ संक्रमण के मामलों में अचानक उछाल आने, बिगड़ती वायु गुणवत्ता, सुरक्षा नियमों को लेकर बरती जा रही लापरवाही और अन्य कारकों को जिम्मेदार बता रहे हैं।
सरकारी और निजी अस्पतालों के चिकित्सा विशेषज्ञ बीते दो सप्ताह में मौत के मामलों में तेज वृद्धि की वजह संक्रमण के मामलों में रोजाना तेज उछाल, त्योहारों के सीजन में बड़ी संख्या लोगों की के बाहर निकलने, लोगों के विभिन्न रोगों से ग्रस्त होने, बढ़ते प्रदूषण के चलते लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने और बाजारों तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा नियमों को लेकर लापरवाही बरते जाने को मानते हैं।
सर गंगा राम अस्पताल में मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष एस पी ब्योत्रा ने कहा कि संक्रमण के मामलों में रोजाना तेज वृद्धि हो रही है, इसी के साथ-साथ मौत के मामलों में भी इजाफा हो रहा है। उन्होंने कहा, ''इसके अलावा प्रदूषण स्तर बढ़ने जैसे अन्य कारक भी हैं जिन्होंने सांस संबंधी परेशानियों से जूझ रहे लोगों की दिक्कतों को और बढ़ा दिया है। पड़ोसी राज्यों से रोगी बहुत कमजोर हालत में दिल्ली आ रहे हैं।''
उन्होंने कहा कि एक कारक जिसकी वजह से संक्रमण और मौत के मामलों में भारी उछाल आया है, वह है बड़ी संख्या में लोगों द्वारा मास्क नहीं पहना जाना और सुरक्षा नियमों को लेकर लापरवाही बरतना। राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के चिकित्सा निदेशक बी एल शेरवाल ने भी ब्योत्रा की बात से सहमति जताते हुए कहा कि अधिकतर ऐसे लोगों की मौत हुई है जिनकी उम्र 60, 70 या उससे अधिक थी। उन्होंने कहा, ''इनमें से अधिकतर लोग मधुमेह या उच्च रक्तचाप जैसी दूसरी बीमारियों से भी जूझ रहे थे, जिन्होंने उनकी मौत की संभावना को और बढ़ा दिया।''