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अदालत ने लॉकडाउन के दौरान बहू को घर से बाहर रखने की सास की कोशिश नाकाम की

बहू 10 मई को अपनी मां से मिलने ससुराल से गयी थी और महज छह दिन बाद ही 16 मई को सास ने एक आवेदन दाखिल कर मांग की कि उनकी बहू को लॉकडाउन की पाबंदियां लागू रहने तक मायके में ही रहने तथा पृथक-वास का पालन करने का निर्देश दिया जाए।

Written by: Bhasha
Published : July 16, 2020 20:07 IST
Court fails mother in laws attempt to keep daughter-in-law out of the house during lockdown । अदालत
Image Source : INDIA TV Representational Image

नई दिल्ली. कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन में एक सास की अपनी पुत्रवधू को उसके ससुराल से बाहर रखने और विवादित संपत्ति पर मजबूत स्थिति कायम करने की कोशिश पर नाराजगी जताते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो सीधे हासिल नहीं किया जा सका उसे परोक्ष तरीके से पाने की कोशिश की गयी। बहू 10 मई को अपनी मां से मिलने ससुराल से गयी थी और महज छह दिन बाद ही 16 मई को सास ने एक आवेदन दाखिल कर मांग की कि उनकी बहू को लॉकडाउन की पाबंदियां लागू रहने तक मायके में ही रहने तथा पृथक-वास का पालन करने का निर्देश दिया जाए।

याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने कहा, ‘‘इस तरह की राहतें मांगने का आधार पूरी तरह समझ से परे है जबकि मुद्दई (सास) के वकील ने साफ तौर पर कबूल किया है कि पहली प्रतिवादी (बहू) और उसकी मां, दोनों में से किसी को कोविड-19 नहीं है।’’

न्यायाधीश ने कहा कि जाहिर है कि सास अपनी बहू के मायके जाने का फायदा उठाना चाह रही थी। उच्च न्यायालय ने दो जुलाई को अपने आदेश में कहा था, ‘‘वादी ने बहू के जाने के बाद एक सप्ताह का भी इंतजार नहीं किया और अदालत में उसे ससुराल लौटने से रोकने के लिए आवेदन दाखिल कर दिया। यही कहा जा सकता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है।’’

जज ने आगे कहा, ‘‘अगर प्रथम प्रतिवादी 10 मई, 2020 को अपनी मां से मिलने नहीं गयी होतीं तो इस बात में थोड़ा संदेह है कि वादी इस स्तर पर इस अदालत से प्रथम प्रतिवादी को विवादित संपत्ति पर लौटने के लिए निर्देश देने की मांग नहीं कर पातीं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे विचार से जो सीधे तौर पर हासिल नहीं हो सका, उसे इस आवेदन के माध्यम से परोक्ष रूप से प्राप्त करने की कोशिश की गयी। मेरे विचार से यह पूरी तरह अस्वीकार्य है और कानूनी प्रक्रिया का खतरनाक तरीके से दुरुपयोग करने जैसा है।’’

उन्होंने यह भी कहा कि दोनों महिलाओं के बीच संपत्ति के विवाद में उच्च न्यायालय के 10 जुलाई, 2019 के आदेश में उन्हें यथास्थिति बनाकर रखने का निर्देश दिया गया था और मौजूदा आवेदन में उक्त निर्देश को बदलने की मांग नहीं की गयी है।

सास के वकील ने दलील दी थी कि 10 जुलाई, 2019 का आदेश उनके लिए लागू नहीं था और केवल बहू के लिए था। उच्च न्यायालय ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि आदेश को सरसरी तौर पर पढ़ने पर पता चलेगा कि यह विवादित संपत्ति के मामले में यथास्थिति बनाये रखने का निर्देश था और किसी महिला के खिलाफ नहीं 

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