Tuesday, February 25, 2025
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नक्सली नहीं, स्थानीय लोग? अबूझमाड़ मुठभेड़ पर उठे सवाल, पुलिस गोलीबारी में 4 नाबालिग के घायल होने का दावा

नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र में हुई मुठभेड़ को ग्रामीणों फर्जी बताया। उन्होंने दावा किया कि मारे गए लोगों में से पांच स्थानीय लोग थे, जो खेतों में काम कर रहे थे।

Edited By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Published : Dec 19, 2024 20:22 IST, Updated : Dec 19, 2024 20:22 IST
प्रतीकात्मक फोटो
Image Source : REPRESENTATIVE IMAGE प्रतीकात्मक फोटो

पिछले सप्ताह छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में हुई मुठभेड़ पर सवाल उठने लगे हैं। एक कार्यकर्ताओं और स्थानीय ग्रामीणों ने मुठभेड़ को फर्जी बताया, जिसमें पुलिस ने सात नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया गया था। उन्होंने दावा किया कि मारे गए लोगों में से पांच स्थानीय लोग थे, जो खेतों में काम कर रहे थे। उन्होंने यह भी दावा किया कि अबूझमाड़ क्षेत्र में मुठभेड़ के दौरान एक लड़की समेत चार नाबालिग भी घायल हुए और पुलिस की गोलीबारी में उन्हें चोटें आईं। हालांकि, पुलिस ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा है कि इन नाबालिगों को नक्सलियों ने मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया था और घायल बच्चे नक्सलियों की गोलीबारी में जख्मी हुए थे।

पुलिस ने 12 दिसंबर को दावा किया था कि नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिलों की सीमा पर स्थित दक्षिण अबूझमाड़ के कल्हाजा-दोंदरबेड़ा गांव में सुरक्षाकर्मियों के साथ मुठभेड़ में सात नक्सली मारे गए, जिनमें दो महिलाएं भी शामिल थीं। पुलिस ने बताया कि मारे गए नक्सलियों में ओडिशा राज्य माओवादी समिति के सदस्य रामचंद्र उर्फ ​​कार्तिक उर्फ ​​दसरू, जिन पर 25 लाख रुपये का इनाम था और रमीला मदकम उर्फ ​​कोसी, जिन पर पांच लाख रुपये का इनाम था, शामिल थे। पुलिस ने बताया कि मुठभेड़ में मारे गए सभी नक्सली पर इनाम घोषित था।

वहीं, आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कहा, "13 दिसंबर की रात को मुझे जानकारी मिली कि पुलिस की गोलीबारी में कुछ बच्चे घायल हो गए हैं, जिसके बाद मैंने 14 दिसंबर को इलाके का दौरा किया और घायल बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया।" स्थानीय लोगों का कहना है कि 11 दिसंबर को सुबह करीब 9:00 बजे सुरक्षाकर्मियों ने उन पर गोलीबारी की जब वे नारायणपुर जिले के रेखावाया पंचायत के कुम्माम और लेकावाड़ा गांव के पास खेतों में काम कर रहे थे। उन्होंने बताया कि गोलीबारी में कुछ लोग घायल हो गए, जबकि कई लोग किसी तरह बच गए।

मारे गए लोग खेतों में काम कर रहे थे

ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस ने मुठभेड़ के बाद मारे गए लोगों को नक्सली बताकर उनकी तस्वीरें शेयर कीं, लेकिन बाद में पता चला कि इनमें से पांच लोग स्थानीय ग्रामीण थे जो अपने खेतों में काम कर रहे थे। केवल रामचंद्र और रमीला ही नक्सली थे। सोनी सोरी ने आरोप लगाया कि पुलिस ने नक्सलवाद को खत्म करने के नाम पर बच्चों और निर्दोष आदिवासियों को निशाना बनाया है। सोनी सोरी ने कहा कि उन्होंने 14 दिसंबर को घायल बच्चों को भैरमगढ़ अस्पताल (बीजापुर जिला) में भर्ती कराया और फिर उन्हें दंतेवाड़ा जिला अस्पताल भेज दिया। बाद में रामली को जगदलपुर ले जाया गया और फिर रायपुर भेज दिया गया, जहां वह फिलहाल डीकेएस सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में भर्ती है।

"पुलिस की गोलीबारी में बेटी घायल"

रामली के पिता ने इस घटना पर कहा, "पुलिस ने अंधाधुंध गोलीबारी की। मेरी बेटी खेल रही थी, तभी पुलिस की गोलीबारी में वह घायल हो गई। वहां कोई नक्सली मौजूद नहीं था।" हालांकि, नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) प्रभात कुमार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मुठभेड़ में घायल हुए बच्चे और ग्रामीण नक्सलियों के साथ थे। उन्होंने कहा कि नक्सलियों ने अपने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की जान बचाने के लिए नाबालिगों और अन्य ग्रामीणों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया, जिसके कारण ये बच्चे घायल हो गए। (भाषा)

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