कांकेर: लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। पूरे देश में चुनाव की तैयारियां भी जोर-शोर से चल रही हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ की कांकेर लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग को लेकर एक अलग ही मामला सामने आया है। दरअसल, भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग की आदिवासी वेश-भूषा में झूमते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इसे लेकर भाजपा प्रत्याशी ने दावा किया है कि उनके शरीर में देवी आती हैं, इसलिए वह झूमते हैं। कांकेर सीट से प्रत्याशी भोजराज नाग ने दावा करते हुए बताया कि उनके शरीर में देवी मां का वास है। साथ ही उन्होंने बताया कि खास करके बस्तर क्षेत्र में जिन लोगों को देवी आती हैं, उन लोगों को पुजारी और बैगा के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि भोजराज को माता का आशीर्वाद है। नवरात्र में वह पूजा-पाठ भी करते हैं और यही कारण है कि उनको बस्तर का बैगा के नाम से भी पुकारा जाता है।
धार्मिक कार्यक्रमों में झूमते दिखे प्रत्याशी
दरअसल, धार्मिक कार्यक्रमों में अक्सर भोजराज नाग को देवी आने के बाद झूमते हुए देखा गया है। वहीं कांकेर से लोकसभा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद पहली बार वह कोंडागांव जिले के बड़ेडोंगर क्षेत्र में माई दंतेश्वरी के पहरेदार बाबा नरसिंहनाथ जी के एक देव मेला में पुजारी के रूप में शामिल हुए। यहां उन्हें देवी आईं और वह जमकर झूमे। यहीं से उन्होंने माई दंतेश्वरी जी का आशीर्वाद लेकर चुनावी जनसंपर्क की शुरुआत की। बीजेपी प्रत्याशी भोजराज नाग ने बताया कि आज आम गांव में देव जातरा का कार्यक्रम था। हमारे अन्तागढ़ क्षेत्र और बस्तर के प्रमुख देवी देवता जमा हुए थे। मैं एक पुजारी हूं, बैगा हूं, इसीलिए मुझे निमंत्रण दिया गया था। भारतीय जनता पार्टी ने मुझे प्रत्याशी बनाया है इसीलिए मैं देवी-देवताओं से भी आशीर्वाद मांग रहा हूं। हमारे आदिवासी खासकर बस्तर क्षेत्र में जिन लोगों को देवी-देवता आता है, उन्हें बैगा सिरहा के नाम से जाना जाता है और मुझे भी देवी आती हैं इसीलिए मुझे बैगा कहा जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसा करते हुए मुझे 15 से 20 साल हो गए। यह परम्परा हमारी संस्कृति और समाज में है।
आदिवासी समाज में है परम्परा
भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग ने कहा कि यहां जो देवी आने की परम्परा है यह प्राचीन काल से आदिवासी समाज में है। मैं ही नहीं, बल्कि बस्तर क्षेत्र के लाखों लोग, जो आदिवासी समाज के लोग हैं, उनमें बैगा पुजारी की प्रथा है। निश्चित रूप से हम आत्मा को परमात्मा से जोड़ते हैं। जिस प्रकार से बड़े-बड़े ऋषि मुनि और साधु-संत आत्मसात हो जाते थे, भगवान के ध्यान में मग्न हो जाते थे, एक प्रकार से भगवान से साक्षात्कार करते थे, उसी प्रकार से आदिवासी समाज का जो बैगा होता है वह देवी-देवता से आत्मसात हो जाता है, डायरेक्ट उनसे तार जुड़ जाता है। मैं उसी बैगा के रूप में काम करता हूं।
(कांकेर से सिकंदर अली की रिपोर्ट)
यह भी पढ़ें-
मतदान में महिलाओं की बढ़ती भूमिका, वोट प्रतिशत बढ़ाने में सरकारी योजनाओं का कितना योगदान