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बिड़ला ग्रुप की सफलता की कहानी आम आदमी की जुबानी

नई दिल्ली: लोगों की सोच को भांपकर मार्केट में अपने पांव पसारने की कला जिस खिलाड़ी को आती है उसे मार्केट का किंग कहा जाता है। वो कहते हैं न कि बाजार की अपनी एक

India TV Business Desk
Updated : August 02, 2015 16:27 IST
अपनाया सामान्य सा...
अपनाया सामान्य सा फंडा और चला एक बैनर का डंडा

नई दिल्ली: लोगों की सोच को भांपकर मार्केट में अपने पांव पसारने की कला जिस खिलाड़ी को आती है उसे मार्केट का किंग कहा जाता है। वो कहते हैं न कि बाजार की अपनी एक अलग खासियत होती है, यह उन्हीं खिलाड़ियों को पसंद करती है जो टी-20 के मौसम में सहवाग, 50-50 की पिच पर सचिन और लंबे फार्मेट में द्रविड जैसा टैलेंट रखता हो। अगर आप यह तय कर लें कि मार्केट में खरीददारों को जो कुछ भी भाता या पसंद आता हो आप उस चीज को हर किसी के लिए उपलब्ध कराने का प्रबंध कर देंगे तो मार्केट में आपका डंडा चलना तय है। आपको जानकर हैरानी होगी कि आदित्य बिड़ला ग्रुप के बैनर तले तमाम ब्रांड के कपड़े बाजार में मौजूद रहते हैं और सभी के सभी उतनी ही शिद्दत के साथ खरीदे जाते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है इसे समझने के लिए आपको थोड़ा धीरज धरना होगा। हम आपको एक ऐसी छोटी कहानी सुनाएंगे जो यूं तो टैक्सटाइल सेक्टर में बिड़ला ग्रुप की सफलता का आईनाभर है, लेकिन यह आपको बाजार के बाजारवाद को समझाने के लिए काफी है। इस कहानी के जरिए समझिए क्यों बिड़ला ग्रुप आज भी लोगों का पसंदीदा ब्रांड बना हुआ है। 


कुछ सालों पहले किसी कस्बे में सुरेश की मिठाई की एक दुकान हुआ करती थी। दुकान में पेठा बेचा जाता था। बिजनेस अच्छा खासा चल रहा था और कस्बे के लोग तेजी से इस दुकान की और बढ़ रहे थे। दुकान पर बढ़ती भीड़ को थामने के लिए सुरेश ने इसी कस्बे में एक और मिठाई की दुकान खोल दी। इस दुकान ने उम्मीद से बेहतर काम किया और सुरेश ने दो साल बाद एक और दुकान खोलने की योजना बना ली। लेकिन इसी बीच सुरेश के दिमाग में गजब का आइडिया आया। उसने सोचा कि अगर कुछ लोग पेठे के 10 पैसे दे सकते हैं तो कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो और अच्छे पेठे के लिए 15-20 पैसे देने को भी तैयार होंगे। ऐसे में अगर वो दुकान नहीं खोलेगा तो कोई और इस दुकान को खोल लेगा। सुरेश ने पूरी तैयारी कर ली थी और वो दुकान खोलने वाला ही था, लेकिन सुरेश के पिता ने बताया कि लोग पेठे के कारण तुम्हारी दुकान की तरफ आकर्षित हुए हैं और ये वाजिब दामों में उपलब्ध है। इसलिए नई दुकान में इस थोड़े महंगे पेठे के लिए अन्य ग्राहकों का आना थोड़ा मुश्किल लगता है। सुरेश के पिता ने सुझाव दिया कि बेटा तुम्हे विकास मिठाई नाम से एक दुकान खोलनी चाहिए। सुरेश ने बताया कि यह आइडिया काम कर गया और इसके बाद उसने इन दोनों ब्रांड्स की कई और दुकाने खोल दीं।

अगली स्लाइड में पढ़िए कहानी का दूसरा और अंतिम भाग

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