15 मई, 2014 को देश जब आम चुनावों के नतीजों का इंतजार कर रहा था और यह लगभग तय था कि नरेंद्र मोदी अगले 5 सालों के लिए भारत के पीएम होंगे। इस बात को एक बरस बीत गया और इस बीच देश में काफी कुछ गुजर गया। इसे देखते हुए उनकी उपलब्धियों और नाकामियों की चर्चा शुरू हो चुकी है। आने वाले दिनों में यह चर्चा और तेज होगी।
पिछले आम चुनावों के दौरान जब कुछ नारे बहुत जोर से उछाले गए तो लगता था कि सूरत रातों रात बदल जाएगी। पर बिसात बिछाना जुमले उछालने से कहीं ज्यादा वास्तविक और व्यावहारिक काम है। इसमें वक़्त लगता है और सब्र भी। पिछले एक साल के दौरान मोदी सरकार के खाते में कुछ उपलब्धियां हैं तो कुछ नाकामियां भी। सरकार की कुछ योजनाओं को लेकर संसद में घमासान मचा रहा तो कुछ योजनाएं जनता को खूब पसंद आई।
मोदी 18 देशों का सफर कर चुके हैं, उनकी पार्टी गठबंधन के रास्ते जम्मू और कश्मीर में सरकार का हिस्सा बन गई। दूसरे चुनावों में भी पार्टी को ठीक ठाक सफलता हाथ लगी लेकिन दिल्ली में BJP को आम आदमी पार्टी के हाथों करारी शिकस्त मिली। लोकसभा में बहुमत के बावजूद सरकार राज्य सभा में विपक्ष के सामने संघर्ष करती हुई दिख रही है। ऊपरी सदन में सरकार के पास नंबर कम हैं और इसका मतलब हुआ कि कई महत्वपूर्ण विधेयक यहां फंसे हुए हैं।
सरकार के लिए यह एक गंभीर स्थिति बन गई है। यह छुपी बात नहीं है कि सरकार जो चीजें हासिल करना चाहती थी, उनमें बहुत सारी बातें अटकी रह गई हैं क्योंकि कई विधेयक कानून में तब्दील नहीं हो पा रहे हैं। इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि लोकसभा में हाशिये पर खड़ा विपक्ष सुर्खियां बटोरने के मामले में बढ़त की स्थिति में दिखता है।
विपक्ष अक्सर किसी तर्क को एक नया ट्विस्ट देकर आम आदमी की भावनाओं को भड़का देता है। लेकिन यह पिकनिक नहीं, राजनीति है, जहां ऐसी चीजें आम होती हैं। इसलिए विपक्ष को दोष देने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। ये चीजें रातों रात नहीं बदलतीं, इसलिए इन हालात में कहा जा सकता है कि सरकार का कामकाज संतोषजनक रहा है। एक साल में जो कुछ किया जा सकता था वह किया गया है।