नई दिल्ली: जर्मनी की दिग्गज कार निर्माता कंपनी फॉक्सवैगन की डीजल गाड़ियां इमिशन टेस्टिंग (प्रदूषण जांच) में फेल पाई गई हैं। कंपनी ने खुद स्वीकार किया है कि उनके डीजल संस्करण की कारों में लगे सॉप्टवेयर के चलते कभी सही नतीजे सामने नहीं आते थे। यानी हर बार प्रदूषण जांच के दौरान ये मानकों के मुताबिक सही पाई जाती थीं। कंपनी की इस धोखाधड़ी को अमेरिका में पकड़ा गया है। दिलचस्प बात यह है कि कंपनी की गाड़ियों की इस खामी को पकड़ने वाले रिसर्चर्स के जिस दल ने इस बात की पुष्टि की है उसमें अरविंद थिरुवेंगड़म नाम का भारतीय भी शामिल है। गौरतलब है कि अरविंद ने आईआईटी दिल्ली से ग्रेजुएशन किया है।
साल 2004 में यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से ग्रैजुएट और अमेरिका से पीएचडी करने वाले अरविंद ने अपने दो साथियों के साथ फॉक्सवैगन की इस खामी को दुनिया के सामने किया। डेनियल कार्डर और मार्क बेश्च के साथ इस खामी को भांपने के बाद उन्होंने कहा कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया, उन्होंने ठीक वैसा ही किया जिसके लिए उन्हें ट्रेनिंग दी गई थी। डीजल इंजन गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के बारे में पता लगाना ही उनका काम था।
कैसे पकड़ी जा सकी खामी-
करीब दो साल पहले अरविंद ने लॉस एंजिलिस और कैलीफोर्निया में कुछ गाड़ियों पर टेस्ट किए थे। इस टेस्ट के नतीजों को थोड़ा और परखने के लिए जब आगे कार्य किया गया तो अमेरिका की पर्यावरण नियामक इकाई फॉक्सवैगन की डीजल गाड़ियों की इस बड़ी धोखाधड़ी को पकड़ पाई।
क्या खामी सामने आई-
नतीजे सामने आने के बाद रिसर्चर्स यह जानकर हैरान रह गए फॉक्सवैगन की जेटा कार लैब के टेस्ट से 15 से 35 गुना ज्यादा नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन कर रही है। साथ ही पीसैट ने लैब की मानक सीमा से 5 से 20 पर्सेंट ज्यादा प्रदूषण फैलाया। आपको बता दें कि साल 2014 में कैलीफॉर्निया के वायु प्रदूषण नियामक और ईपीए ने कंपनी को उसकी डीजल गाड़ियों की इस खामी को दूर करने का आदेश दिया था। कंपनी के मुताबिक इस खामी को दुरुस्त कर लिया गया। कंपनी के नए मॉडल्स की दोबारा जांच के बाद सबकुछ सही पाया गया। हालांकि जब ईपीए ने अपने स्तर पर जांच शुरु की तो उसने कंपनी को दोषी पाया। ईपीए ने 18 सितंबर 2015 को फॉक्सवैगन को नियमों के उल्लंघन का दोषी मानकर लेटर भेज दिया।
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