नई दिल्ली: भूमि अधिग्रहण से जुड़ी समस्याओं की वजह से देश भर में 804 औद्योगिक परियोजनाओं में से सिर्फ आठ प्रतिशत परियोजनाएं लंबित हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत दिए गए एक आवेदन से यह खुलासा हुआ है।
आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक को मिली जानकारी के मुताबिक, भूमि अधिग्रहण की समस्याओं की वजह से इस साल फरवरी से सिर्फ 8.2 प्रतिशत यानी 804 में से कुल 66 परियोजनाएं लंबित पड़ी हैं, जिनमें से 29 सरकारी और 37 निजी परियोजनाएं हैं।
आरटीआई में इन 150 से अधिक परियोजनाओं के लंबित होने के कारण को 'अन्य' कर दर्शाया गया है, जिसका अर्थ समझ में नहीं आता, जबकि 120 से अधिक परियोजनाओं के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
मंजूरी नहीं मिलने की वजह से लगभग 95 यानी 11.8 प्रतिशत परियोजनाएं बाधित हुई हैं, जबकि अवांछित बाजार स्थितियों की वजह से कम से कम 97 यानी 12 प्रतिशत परियोजनाएं रुकी हुई हैं। पूंजी नहीं मिलने की वजह से 10.5 प्रतिशत यानी 85 परियोजनाएं फंसी हुई हैं और प्रमोटरों के हितों की वजह से 11.1 प्रतिशत यानी 90 परियोजनाओं में देरी हुई है।
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फरवरी में संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15 पेश किया था, जिसमें देश भर में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में लंबित पड़ी परियोजनाओं की पूरी सूची शामिल थी।
दिल्ली के स्थानीय निवासी एवं आरटीआई दायर करने वाले कार्यकर्ता नायक ने इन परियोजनाओं के लंबित होने के कारणों के बारे में जानकारी मांगी।
वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने बताया कि भूमि अधिग्रहण समस्याओं की वजह से 1,10,000 करोड़ रुपये की परियोजनाएं लंबित पड़ी हैं। आंकड़े बताते हैं कि पर्यावरणीय मंजूरियां नहीं मिलने की वजह से लगभग 30 परियोजनाएं रुकी हुई हैं।
नायक ने आईएएनएस को बताया कि 75 परियोजनाएं होटलों और रिजॉर्ट निर्माण से संबंधित थीं। 34 परियोजनाएं शानदार रिहायशी घरों, 28 शॉपिंग मॉल और पांच परियोजनाएं मल्टीप्लेक्सों के निर्माण से संबंधित थीं।
कुल मिलाकर, ये परियोजनाएं बिजली उत्पादन, हवाईअड्डों के निर्माण एवं विस्तार, सड़क एवं रेलवे विस्तार, औषधि, कपड़ा और सॉफ्टवेयर क्षेत्रों से जुड़ी हुई थी।