Bihar Politics: बिहार में सिर्फ सरकार नहीं बदली है, पूरी सियासत बदल गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही हैं लेकिन बाकी सब बदल गया है। कल तक बिहार विधानसभा के स्पीकर रहे विजय सिन्हा को बीजेपी ने विधानसभा में अपना नेता बना दिया। मंडल-कमंडल आने के बाद ये पहला मौका है जब बिहार में विपक्ष का नेता अगड़ी जाति का होगा। जब लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं तो सुशील मोदी विधानसभा में विपक्ष के नेता थे, जब नीतीश और तेजस्वी सरकार चला रहे ते तो प्रेम कुमार को मौका दिया गया था। सुशील मोदी और प्रेम कुमार दोनों ही पिछड़ी जाति से आते हैं।
बिहार में दिखेगी पुरानी सियासी दुश्मनी
विपक्ष के नए नेता विजय सिन्हा भूमिहार बिरादरी से हैं और नीतीश कुमार के प्रमाणित विरोधी माने जाते हैं। विधानसभा के अंदर भी एक बार नीतीश और विजय सिन्हा आमने-सामने आ चुके थे, तब बीजेपी के सहारे नीतीश मुख्यमंत्री थे और विजय सिन्हा को बीजेपी ने ही स्पीकर बनवाया था। विधानसभा के अंदर जब झगड़ा हुआ तो नीतीश ने शर्त रखी थी कि विजय सिन्हा उनसे माफी मांगें, लेकिन उस वक्त विजय सिन्हा नहीं झुके और स्पीकर पद की मर्यादा का हवाला देते हुए बीजेपी ने भी मामले को रफा-दफा कर दिया। लेकिन जेडीयू के नेता कहते हैं कि नीतीश वो अपमान नहीं भूले हैं, और अब वही पुरानी सियासी दुश्मनी बिहार में दिखेगी।
बिहार में हर पार्टी हिसाब से ही लेती है हर बड़ा फैसला
देश की सियासत में बिहार ऐसा राज्य है जहां हर पार्टी हर बड़ा फैसला जाति के हिसाब से ही लेती है। बिहार में भूमिहार वोट सिर्फ 6 फीसदी के करीब है, लेकिन इनका प्रभाव करीब 80 विधानसभा सीट और 10 लोकसभी सीट पर है। बीजेपी ने केंद्र में गिरिराज सिंह को कैबिनेट मंत्री बनाया है, जो भूमिहार बिरादरी से ही आते हैं। दरअसल जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी इसी बिरादरी से हैं और बिहार मंत्रिमंडल में नीतीश के सबसे करीबी मंत्री विजय चौधरी भी भूमिहार समाज से ही आते हैं। इसलिए बीजेपी ने अपने परंपरागत वोट बैंक को दिल्ली में गिरिराज और पटना में विजय सिन्हा वाला फॉर्मूला दिया है।
अगड़ा-पिछड़ा समीकरण बनाकर रखना चाहती है बीजेपी
सम्राट चौधरी को विधान परिषद में नेता बनाया गया है जो कुशवाहा बिरादरी से आते हैं। नीतीश खुद कुर्मी समाज से हैं और उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा को अपनी पार्टी के संसदीय बोर्ड का चीफ बनाया है। बीजेपी अगड़ा-पिछड़ा समीकरण को बनाकर रखना चाहती है। इसलिए विधानसभा में भूमिहार तो विधान परिषद में कुशवाहा बिरादरी के नेता को फ्रंट लाइन में बिठाया गया है। बिहार में संजय जायसवाल प्रदेश अध्यक्ष हैं जो वैश्य समाज से आते हैं। इस तरह से वैश्य बिरादरी को भी साथ रखने की कोशिश होगी। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय यादव बिरादरी से हैं और बीजेपी नेताओं का एक प्रभावशाली गुट इन्हें आगे रखकर अगली विधानसभा चुनाव लड़ना चहता है।
इस बार 30 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है बीजेपी
बिहार में लोकसभा की 40 सीटे हैं। इसमें से बीजेपी के पास सत्रह और नीतीश कुमार के पास 16 सीटें हैं। 6 सीटें एलजेपी ने जीती थी और एक सीट कांग्रेस के पास है। बीजेपी इस बार कम से कम 30 सीटें लड़ना चाहती है। 2014 में जब नीतीश कुमार अकेले चुनाव लड़े तो सिर्फ 2 सीट जीत पाए थे। 2019 में नीतीश की पार्टी बीजेपी के साथ लोकसभा चुनाव लड़ी थी, अब 2024 में नीतीश कुमार की जेडीयू, तेजस्वी यादव की आरजेडी, लेफ्ट फ्रंट और जीतन राम मांझी की HUM सब एक साथ आ रहे हैं। बीजेपी के साथ सिर्फ एलजेपी के दोनों गुट दिखाई दे रहे हैं।
क्या मोदी फैक्टर के सामने कमजोर पड़ेगा नीतीश और तेजस्वी फैक्टर?
अलग-अलग बिरादरी के परंपरागत वोटबैंक के नजरिए से देखें तो नीतीश और तेजस्वी का महागठबंधन भारी पड़ता दिखता है। लेकिन मोदी फैक्टर ऐसा है जहां जातियों वाला कैलकुलेटर कई बार बिगड़ जाता है। बीजेपी इस बार भी नरेंद्र मोदी को पिछड़ा समाज का प्रभावशाली प्रधानमंत्री के तौर पर प्रचारित करेगी और पिछड़े वोटर के लिए ये मान और स्वाभिमान दोनों का मसला है। इसलिए मोदी फैक्टर के सामने नीतीश और तेजस्वी फैक्टर कमजोर पड़ सकता है।