Sunday, November 03, 2024
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पटना हाईकोर्ट ने 65 फीसदी आरक्षण कोटे को किया रद्द, जीतन राम मांझी बोले- यह वंचितों का अधिकार है

पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार के 65 फीसदी आरक्षण कोटे वाले फैसले को रद्द कर दिया है। इस मामले पर अब केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने बयान दिया है। उन्होंने कहा कि यह वंचितों का अधिकार है, जिसकी वजह से वह अपने सपनों को पूरा करने की सोचते हैं।

Written By: Avinash Rai @RaisahabUp61
Updated on: June 20, 2024 18:09 IST
Patna High Court cancels 65 percent reservation quota Jitan Ram Manjhi said this is the right of the- India TV Hindi
Image Source : PTI जीतन राम मांझी

पटना हाईकोर्ट ने बिहार की नीतीश सरकार को तगड़ा झटका दिया है। दरअसल पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें जातीय गणना के बाद आरक्षण सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी करने का फैसला लिया गया था। पटना हाईकोर्ट ने आरक्षण की सीमा को बढ़ाने के राज्य सरकार को इस फैसले को रद्द कर दिया है। इसपर अब जीतन राम मांझी ने अपना बयान दिया है। सोशल मीडिया साइट पर इस बाबत उन्होंने एक पोस्ट लिखा और कहा कि आरक्षण वंचितों का अधिकार है, जिसके सहारे वे अपने सपनों को पूरा करने की सोचते हैं।

आरक्षण पर क्या बोले जीतन राम मांझी?

जीतन राम मांझी ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा, "मैं उच्च न्यायलय के आदेश पर तो टिप्पणी नहीं कर सकता पर एक बात स्पष्ट है कि आरक्षण वंचितों का अधिकार है जिसके सहारे वह अपने सपनों को पूरा करने की सोंचते है। मैं बिहार सरकार से आग्रह करता हूं कि उच्च न्यायलय के फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दायर करें जिससे आरक्षण को बचाया जा सके।" बता दें कि बिहार सरकार ने जातीय जनगणना के बाद शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी, ईबीसी और अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण करने का फैसला लिया था।

सामान्य वर्ग के लिए केवल 35 फीसदी का अधिकार

बिहार सरकार के इस फैसले को चैलेंज करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के इस फैसले को रद्द करने का आदेश दिया है। इस मामले में 11 मार्च को ही सुनवाई हो गई थी। हालांकि कोर्ट ने फैसले को अपने पास सुरक्षित रखा था। चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की और राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया। बता दें कि याचिकाओं में राज्य सरकार द्वारा 9 नवंबर 2023 को पारित कानून को चुनौती दी गई थी। इस कानून के तहत सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए मात्र 35 फीसदी ही पदों पर सरकारी सेवा का अधिकार दिया गया था। 

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