पटना: बिहार की हाजीपुर सीट को लेकर चाचा और भतीजा यानी पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। हाजीपुर से सांसद और RLJP प्रमुख पशुपति कुमार पारस ने कहा है कि हाजीपुर से चुनाव वो ही लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि राजनीतिक जीवन के दौरान वो हाजीपुर के लोगों की सेवा करते रहे हैं और आगे भी वो ऐसा करते रहेंगे। चिराग पासवान के दावे को लेकर पशुपति पारस ने कहा कि उन्हें वहां जाना चाहिए जहां उनके पिता रामविलास पासवान उन्हें लेकर गए थे यानी पशुपति पारस का कहना है कि चिराग को जमुई से ही चुनाव लड़ना चाहिए।
हाजीपुर पर किसकी दावेदारी में दम?
दरअसल, चिराग पासवान ने हाजीपुर सीट पर महिला कार्ड खेलने की कोशिश की है। उन्होंने अपनी मां (रीना पासवान) को हाजीपुर से चुनाव लड़वाने की बात कही है। इसी पर जब पशुपति पारस से सवाल किया गया तो उन्होंने बता दिया कि हाजीपुर सीट पर दावेदारी मेरी ही है। उन्होंने अपने भतीजे चिराग पासवान को लेकर पत्रकारों से चर्चा के दौरान कहा कि उनको कहिए जहां ‘पासवान जी’ ने चुनाव लड़ने के लिए कहा था वहां जाकर जनता की सेवा करें। हाजीपुर से मैं ही चुनाव लड़ूंगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ''मेरी तैयारी हाजीपुर में बीते 1 वर्ष से चल रही हैं। मैं लगातार जनता की सेवा में लगा हुआ हूं। हाजीपुर का संगठन हो या पार्टी का संगठन हो 40 वर्षों से मैं ही सेवा करता रहा हूं। एनडीए गठबंधन के एक नंबर के सहयोगी हम हैं।''
चाचा-भतीजे में शुरू हुआ नया विवाद
पारस ने इससे पहले भी दावा किया था कि उन्होंने अपने दिवंगत भाई के आग्रह पर हाजीपुर से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। वर्ष 2021 में लोजपा दो हिस्सों में बंट गई थी। पारस के नेतृत्व वाले समूह को राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के रूप में जाना जाता है, वहीं चिराग के नेतृत्व वाले समूह को लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) कहा जाता है। हाजीपुर के सांसद पारस ने यह भी दावा किया कि उनके दिवंगत भाई ने इस बात पर जोर दिया था कि वह इस सीट से चुनाव लड़ें क्योंकि वह, न कि चिराग पासवान, "राजनीतिक उत्तराधिकारी" थे। अब लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान इस बात पर जोर देते रहे हैं कि उनकी पार्टी हाजीपुर से चुनाव लड़ेगी।
हाजीपुर सीट को लेकर इसलिए मची होड़
दरअसल, रामविलास पासवान ने हाजीपुर की सीट अपने भाई पशुपति पारस को सौंपी थी और बेटे चिराग को जमुई से चुनावी मैदान में उतारा था। उनके निधन के बाद चाचा-भतीजे के बीच रिश्ते में तलवार खींची जा चुकी है और लोजपा भी दो भागों में बंट गई है इसलिए दोनों नेता इस सीट पर अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हैं। इस सीट का इतिहास देखा जाए तो रामविलास पासवान की सियासी जड़ें यहीं से मजबूत रही है और इसका लाभ कहीं न कहीं दोनों नेता लेना चाहते होंगे।
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