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मुकेश सहनी की जिंदगी की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं, बिहार में मंत्री पद गंवा चुके हैं सहनी

सहनी की हैसियत बिहार की राजनीति में कम है, लेकिन वे हमेशा चर्चा में बने रहते हैं। सहनी बहुत कम दिनों के संघर्ष के बाद पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री के पद तक पहुंच गए

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: March 30, 2022 18:48 IST
Mukesh Sahni, Former Bihar Minister- India TV Hindi
Image Source : PTI Mukesh Sahni, Former Bihar Minister

Highlights

  • 19 वर्ष की आयु में ही पैसा कमाने के लिए मायानगरी मुंबई पहुंच गए
  • कॉस्मेटिक दुकान में सेल्स मैन की नौकरी की, रोजाना 30 रु. मजदूरी मिलती थी

पटना:  बिहार की सियासत में कुछ ही दिनों में फर्श से अर्श तक पहुंचने वाले विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी भले ही 500 से कम दिनों तक बिहार में मंत्री पद पर रहे हों, लेकिन इनकी जिंदगी की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। बिहार के दरभंगा से मुंबई और फिर मुंबई से बिहार आकर राजनीति में हाथ आजमाने का फैसला किसी के लिए आसान नहीं है, लेकिन मुकेश सहनी ने इसी संघर्ष को अपना पसंद बनाया।

सहनी की हैसियत बिहार की राजनीति में कम है, लेकिन वे हमेशा चर्चा में बने रहते हैं। सहनी बहुत कम दिनों के संघर्ष के बाद पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री के पद तक पहुंच गए, लेकिन 500 से कम दिनों के अंदर ही उन्हें यह पद गंवाना भी पड़ा।

दरभंगा के सुपौल बाजार के रहने वाले सहनी 19 वर्ष की आयु में ही पैसा कमाने के लिए मायानगरी मुंबई पहुंच गए और वहां कॉस्मेटिक दुकान में सेल्स मैन की नौकरी प्रारंभ की। इस दौरान उन्हें प्रतिदिन 30 रुपये की दर से मजदूरी मिलती थी।

इस दौरान उन्होंने अपने परिश्रम की बदौलत फिल्म सेट डिजाइन करने वालों के साथ मित्रता कर ली और फिर इस क्षेत्र में प्रवेश पा लिया। कई फिल्मों में उन्होंने सेट तैयार किए, लेकिन उनकी चर्चा हिट फिल्म देवदास के सेट से हुई। इसके बाद सहनी का काम निकल पड़ा। उनकी गिनती चर्चित सेट डिजाइनर में होने लगी।

उन्होंने दक्षिण की फिल्मों के लिए भी सेट डिजाइनर का काम प्रारंभ कर दिया। इस बीच सहनी ने मुकेश सिनेवर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड नाम से अपनी कंपनी भी बना ली।

सहनी का जीवन मजे से गुजरने लगा था। इसी दौरान उन्हें राजनीति का विचार आया और अपने समाज के लोगों के लिए कुछ करने का मन बनाया। इसके बाद राज्य के करीब सभी समाचार पत्रों में एक इश्तेहार देकर उन्होंने बिहार में राजनीति प्रारंभ कर दी। लेकिन, यह उतना आसान नहीं था।

प्रारंभ में उन्होंने उन क्षेत्रों में अपनी पहुंच बनाई जहां मछुआरों की आबादी अधिक थी। इसके बाद इन्होंने खुद को 'सन ऑफ मल्लाह' के रूप से खुद को स्थापित कर सियासत में सक्रिय रूप से जुड़ गए।

सहनी का झुकाव प्रारंभ में भाजपा की ओर रहा। वे 2014 में भाजपा के साथ नजर आए, लेकिन भाजपा का साथ ज्यादा दिनों तक नहीं चला और 2018 में उन्होंने अपनी पार्टी वीआईपी का गठन कर स्वतंत्र राजनीति प्रारंभ कर दी।

इसके बाद वे विपक्षी दलों के महागठबंधन के साथ हो गए और खगड़िया से खुद लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद 2020 में वे फिर से राजग के साथ हो लिए। इस चुनाव में वीआईपी के चार प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंच गए, हालांकि इस चुनाव में भी सहनी हार गए।

इसके बावजूद उन्हें मंत्री बनाया गया और फिर वे विधान परिषद के सदस्य भी बन गए। इसी दौरान सहनी की पार्टी ने यूपी विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने लखनऊ पहुंच गई, जो भाजपा को पसंद नहीं आया। इसके बाद वीआईपी के सभी विधायक भाजपा में शामिल हो गए और अंत में सहनी को मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ गया।

इनपुट-आईएएएनस

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