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एक ही शेड में 52 बच्चे, 3 टीचर और वहीं बन रहा मिड डे मील, बिहार में 18 सालों से ऐसे चल रहा सरकारी स्कूल

बिहार के मधुबनी में जिला परिषद के शेड के एक कमरे में 18 वर्षों से एक सरकारी प्राथमिक स्कूल चल रहा है। 2006 में स्थपित हुए इस स्कूल में 1 से 5 कक्षा के 52 बच्चे पढ़ते हैं। इसी कमरे में तीन शिक्षक, 52 बच्चों के साथ मिड डे मील और स्कूल का कार्यालय भी चलता है।

Edited By: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Published on: January 12, 2024 19:37 IST
madhubani news- India TV Hindi
Image Source : VIDEO GRAB मधुबनी में इसी शेड के अंदर 18 साल से चल रहा स्कूल

अयोध्या में प्रभु श्री राम की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव मंदिर की जगह हॉस्पिटल बनने का बयान दे रहे हैं। लेकिन उन्हीं के बिहार के मधुबनी जिले में जमीन उपलब्ध होने के बाद भी 16 सालों में एक सरकारी स्कूल का निर्माण नहीं हो सका है। ये मामला रहिका प्रखंड के जगतपुर पंचायत का है। यहां जीबछ चौक से दक्षिण की ओर सड़क किनारे एक प्राथमिक स्कूल स्थित है। जीबछ चौक से दक्षिण की ओर गई सड़क में जिला परिषद के शेड में यह प्राथमिक स्कूल पिछले 16 सालों से ऐसे ही चल रहा है।

एक शेड में 52 बच्चे, 3 टीचर और बनता है मिड डे मील

जिला परिषद के शेड के एक कमरे में चलने वाले इस प्राथमिक स्कूल में 1 से 5 कक्षा तक के 52 बच्चे पढ़ते हैं और इन्हें तीन शिक्षक पढ़ाते हैं। हैरानी की बात तो ये है कि इसी शेड में कार्यालय भी चलता है और बच्चों के लिए मिड डे मील भी इसी एक कमरे में बनाया जाता है। नीचे दिए वीडियो में आप इस स्कूल के एक कमरे की स्थिति, बच्चों की संख्या, कक्षा संचालन और एमडीएम बनाने की स्थिति का आंकलन कर सकते हैं कि किन हालातों में स्कूल चलाया जा रहा है। 

ग्रामीण ने स्कूल के लिए 15 साल पहले दान दी थी जमीन

स्कूल की बिल्डिंग निर्माण के लिए स्थानीय निवासी राज कुमार यादव ने गांव के बच्चों की शिक्षा और भविष्य संवारने के लिए अपनी दो कट्ठा पुस्तैनी भूमि सरकार को दान में दी थी। लेकिन राज कुमार यादव भी पिछले 15 सालों से गांव में स्कूल बनने का इंतजार करते-करते थक गए पर स्कूल आज तक नहीं बना। मगर सरकारी दस्तावेजों में स्कूल चल जरूर रहा है, लेकिन जिला परिषद के शेड के एक कमरे में। 

तीन शौचालयों पर सरकारी राशि की बर्बादी

हालांकि सरकारी भूमि पर स्कूल के लिए शौचालय जरूर बना है, मतलब स्कूल चालू है। स्कूल के लिए खाली पड़ी जमीन पर भवन तो नहीं बने लेकिन तीन शौचालय बने हैं, जो सरकारी राशि की बर्बादी और पूरी तरह से अनुपयोगी ही हैं। ये मंजर सरकारी व्यवस्था और संवेदनहीनता की पोल खोल रहा है। स्कूल भवन निर्माण के लिए दान में मिली जमीन के पास ही डेढ़ कट्ठा अन्य भूमि सरकारी और है कुल मिलाकर साढ़े तीन कट्ठा भूमि पर प्राथमिक विद्यालय का 8 से 10 कमरों का भवन जरूर बन सकता है। 

2006 में जारी किए पैसे सरकार ने लिए वापस

इस विद्यालय के हेडमास्टर अफरोज आलम ने बताया कि विद्यालय की स्थापना वर्ष 2006 में की गई थी, जिसके बाद भवन निर्माण के लिए 2007 में मिले 5 लाख 27 हजार रुपए नाकाफी थे। जिसे 2015 में सरकार ने वापस ले लिया। तब से आज तक किसी भी अधिकारी ने विद्यालय के भवन निर्माण को लेकर कोई रुचि नहीं दिखाई है। वहीं इस स्कूल को लेकर आश्चर्य व्यक्त करते हुए जिले के नए डीईओ राजेश कुमार ने कहा कि जल्द भवन निर्माण की प्रक्रिया शुरू कराई जाएगी। सरकारी उपेक्षा,शिक्षा विभाग के लापरवाह अधिकारियों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के अदूरदर्शीता की वजह से 16 सालों में नए प्राथमिक स्कूल के भवन का निर्माण नहीं हो पा रहा है।

(रिपोर्ट- कुमार गौरव)

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