देश में एक तरफ जहां बाढ़ और बारिश से कहर बरपा हुआ है। कई क्षेत्रों में बाढ़ की तबाही से हजारों लोग बेघर हो गए तो दूसरी तरफ बिहार के उत्तरी इलाके में सूखे से किसान और जन जीवन त्रस्त हो गया है। पूर्वी चंपारण जिले से होकर नेपाल की दर्जनों नदियां हर साल कहर बरपाती हैं, लेकिन इस साल बारिश नहीं होने के कारण किसानों का हाल बेहाल है। धान की रोपाई के लिए ये मौसम बेहतर माना जाता है लेकिन सूखा पड़ने के कारण 80 प्रतिशत खेतों में धान की रोपाई ही नहीं हो पाई।
खेतों में मोटी दरारें, बोरिंग पम्पसेट चलाने पर मनाही
इस सूखे का असर सबसे ज्यादा किसानों के खेतों में देखने को मिल रहा है। यहां धान की फसल की रोपाई का समय बीत गया है, करीब 80 प्रतिशत खेत जोताई कर किसानों ने तैयार भी कर लिए हैं लेकिन बारिश नहीं होने के कारण खेत में धान की रोपाई नहीं हो पाई। वहीं जिन 20 प्रतिशत खेत में धान की रोपाई हो भी गई वो फसल खेत में ही जल गई। खेतों में मोटी-मोटी दरारें पड़ी हुई हैं। क्षेत्र में वाटर लेबल नीचे जाने के कारण बोरिंग पम्पसेट, चापाकल ज्यादातर पानी ही नहीं दे रहे हैं। स्थानीय प्रसाशन द्वारा किसानों को बोरिंग पम्पसेट चलाकर पानी निकालने से मना किया जा रहा है। जिले भर में सूखी नहरें केवल देखने के लिए ही बची हैं। ऐसे में अब किसान बारिश के लिए आसमान की तरफ टकटकी लगाए देख रहे हैं।
सामान्य से लगभग 74 फीसदी कम हुई बारिश
पूर्वी चंपारण जिले के 27 प्रखंडों की यही स्थिति है, जहां बारिश के लिए हाहाकार मचा हुआ है। किसान पम्पसेट से अपने खेतों में पानी पटा रहे हैं। बावजूद इसके बारिश नहीं होने के कारण खेतो में रोपाई की गई तो धान की फसलें जल रही हैं और खेतों में मोटी-मोटी दरारें फटी हुई हैं। मौसम विभाग की मानें तो फ़िलहाल बारिश होने का कोई अनुमान भी नहीं है। वहीं कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार अभी तक जुलाई माह में सामान्य वर्षापात में 366 mm वर्षा होनी चाहिए थी, जिसकी बजाय महज 92 mm मात्र वर्षा हुई है, जो सामान्य वर्षापात से लगभग 74 फीसदी कम है। ऐसी परिस्थिति में किसानों के लिए एक तरह से यह प्राकृतिक आपदा साबित हो रहा है। वहीं बारिश नहीं होने के कारण किसानों को खेती करने में ज्यादा लागत लग रही है और लोग खेती से दूर भी भाग रहे हैं।
(रिपोर्ट- अरविंद कुमार)
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