पटना: बिहार में सत्ता परिवर्तन हो गया है। नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़कर अब एनडीए का हाथ थमा लिया है। आगामी लोकसभा चुनाव भी वह एनडीए के साथ ही मिलकर लड़ेंगे। जहां एकतरफ बीजेपी ने नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू को एनडीए में लेकर कई मुश्किलें हल कर ली हैं तो वहीं गठबंधन के आगे एक नई समस्या भी आ गई है।
सहयोगियों को मनाए रखने की जिम्मेदारी बीजेपी पर
दरअसल नीतीश कुमार के एनडीए में आने से बिहार के अन्य सहयोगी दलों की चिंता बढ़ गई है। इसमें चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा मुख्य है। यह दोनों दल नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी माने जाते हैं और अब नीतीश कुमार के एनडीए में आ जाने से लोकसभा चुनाव में इनकी सीटें कम होने की संभावना है। हालांकि सूत्रों का दावा है कि एनडीए में सीट बंटवारे के गणित के सूत्र तलाशने की पहल भी शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि बीजेपी और जेडीयू बड़े घटक दल हैं। लेकिन, चार अन्य सहयोगी दलों को भी सम्मानजनक सीट देने की तैयारी की जा रही है, जिससे गठबंधन में मजबूती बनी रहे।
जेडीयू के एनडीए में आने से बदले हालात
दरअसल, एनडीए में जब जेडीयू शामिल नहीं थी तब बड़ी आसानी से सीट बंटवारे की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन जेडीयू के आने के बाद समीकरण बदल गया है। वैसे भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व किसी भी सहयोगी पार्टी को असहज नहीं होने देना चाह रहा है। यही कारण माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह में भी एनडीए में शामिल सभी दल के नेता उपस्थित थे। सूत्रों की माने तो जदयू को बिहार में लोकसभा चुनाव में भाजपा से कम सीट मिल सकती है।
बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें
जानकारी के मुताबिक, बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें है। इनमे भाजपा 17-18 सीटों पर लड़ना चाहती है। जबकि, जेडीयू को 14 से 15 सीटें दी जा सकती है। बीजेपी के फिलहाल 17 और जदयू के 16 सांसद हैं। लोजपा के दो गुट चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस की पार्टी के पास भी छह सांसद हैं। दोनों दलों में सीटों का बंटवारा इसी अनुपात में होने की संभावना है। जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोजपा भी एनडीए में शामिल है, ऐसे में इन्हें भी तीन से चार सीट मिल सकती है।