Highlights
- पहले से ही लिखी जा रही थी इस बदलाव की स्क्रिप्ट
- नीतीश को था अपनी पार्टी में टूट का डर
- 22 साल में 8वां मौका बना, जब सीएम बने नीतीश
Bihar News: बिहार में एक बार फिर सत्ता बदल गई है। नीतीश कुमार फिर सीएम बन गए। आठवीं बार उन्होंने सीएम पद की शपथ ले ली। इस पूरे घटनाक्रम में एक सवाल यह खड़ा कर दिया है कि जब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव हुए, उसमें नीतीश कुमार ने बीजेपी के समर्थन में वोट दिया और एनडीए में होने का धर्म निभाया। फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक उन्होंने पाला बदलने का फैसला ले लिया? बिहार में राजनीतिक समीकरण बदलने के बाद नीतीश कुमार सीएम और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बन गए। अब बिहार की राजनीति में आए इस परिवर्तन के कारण ढूंढे जा रहे हैं।
पहले से ही लिखी जा रही थी इस बदलाव की स्क्रिप्ट
वैसे नीतीश कुमार फिर पलटी मार सकते हैं, इस बात पर किसी को बहुत ज्यादा आश्चर्य नहीं था, पर इसकी स्क्रिप्ट पहले से ही लिखी जाना शुरू हो गई थी। कुछ समय पहले राबड़ी देवी के घर इफ्तार पार्टी में अपने सीएम आवास के पिछले दरवाजे से निकलकर पैदल ही राबड़ी देवी के घर इफ्तार पार्टी में शामिल होने के लिए सीएम नीतीश कुमार निकल गए थे। जहां तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव भी मौजूद थे। इस दौरान तेजस्वी के साथ अनौपचारिक बातचीत की बॉडी लैंग्वेज भी ऐसी दिखाई दे रही थी जैसे चाचा और भतीजा बात कर रहे हों।
क्या राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव तक आरजेडी से डील नहीं हुई थी पक्की?
दूसरी बात यह कि नीतीश कुमार ने पिछले कुछ समय से मीडिया में कुछ भी वक्तव्य नहीं दिया था। वे एनडीए के घटक दल होने के बाद भी खामोशी से सरकार चला रहे थे, क्योंकि अंदर ही अंदर कुछ अलग ही खिचड़ी पक रही थी। राजनीतिक पंडितों के अनुसार शायद तब तक राजद के साथ डील पक्की नहीं हुई होगी। इसलिए राष्टपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में ही वोट दिया। यही कहानी उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए भी दोहराई।
क्या नीतीश को था अपनी पार्टी में टूट का डर?
सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या राष्ट्रपति चुनाव तक क्या सोनिया गांधी ने लालू प्रसाद यादव को नीतीश के साथ सरकार मनाने नहीं मनाया था? वहीं दूसरी ओर, इस बारे में जेडीयू के संसदीय दल के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का बयान काफी कुछ बातें स्पष्ट करता है। उन्होंने कहा कि जेडीयू ने बीजेपी को धोखा नहीं दिया। यह बात इसी से साबित होती है कि हमने राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी बीजेपी का साथ दिया। कुशवाहा ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र की ही तरह उनकी पार्टी को तोड़ने की साजिश रची जा रही थी। उसके बाद हमने, हमारे विधायकों व अन्य पार्टी नेताओं ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर लालटेन यानी आरजेडी के साथ जाकर और मिलकर सरकार बनाने का निर्णय लिया।
राजनीतिक पंडितों के अनुसार पहले भी कई बार लालू और नीतीश में आपस में ठनी है, लेकिन वे फिर एकसाथ हो गए। इसलिए जब एक बार फिर इस नए आरजेडी और जेडीयू के गठबंधन ने साथ मिलकर सरकार बनाई तो कोई बहुत बड़ा अचरज नहीं हुआ।
सोशल मीडिया पर नीतीश के कदम की हो रही आलोचना
बीजेपी ने इस मामले में नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला है। बीजेपी ने नीतीश को 'पलटूराम' कहते हुए उन पर कई आरोप लगाए। बीजेपी के नेताओं के बयानों के अलावा सोशल मीडिया में भी नीतीश कुमार के इस निर्णय पर उन्हें कई नेताओं ने'धोखेबाज' तक करार दिया।
22 साल में 8वां मौका बना, जब सीएम बने नीतीश
बता दें कि कल 10 अगस्त को नीतीश कुमार ने सीएम पद की और तेजस्वी यादव ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। नीतीश 22 साल में आठवीं बार बिहार के सीएम बने। उन्होंने मंगलवार को ही बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाने और महागठबंधन के साथ आने का निर्णय लिया था। महागठबंधन में 7 पार्टियां शामिल हैं। बिहार में 243 विधानसभा सीटों पर बहुमत का आंकड़ा 122 का है, वहीं नीतीश ने 164 विधायकों के समर्थन का दावा किया है।