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Bihar Holi: होली के दिन इन पांच गांवों में नहीं जलता चूल्हा, न ही उड़ते हैं गुलाल, अनोखी है परंपरा

इन गांवों में होलिका दहन की शाम से ही 24 घंटे के अखंड कीर्तन का आयोजन किया जाता है। इस कार्यक्रम की शुरुआत से पहले ही लोगों के घरों में मीठा भोजना पक कर तैयार हो जाता है। बता दें कि अखंड कीर्तन जबतक समाप्त नहीं हो जाता। तब तक इन गांवों में चूल्हा नहीं जलाया जाता।

Written By: Avinash Rai
Published on: February 28, 2023 18:04 IST
Bihar Holi Nalanda five unique villages there no one celebrate holi till last 51 years- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO इन गांवों में नहीं खेली जाती होली

Bihar Holi: होली का त्योहार 8 मार्च को धूमधाम से पूरे देशभर में मनाया जाएगा। इस त्योहार पर लोग रंग-गुलाल से पूरे दिन होली खेलते व खुशियां बांटते हैं। इस दिन सबके घरों में तरह तरह के पकवान बनाए जाते हैं और भी कई तरीकों से इस दिन को मनाया जाता है। लेकिन नालंदा जिले के बिहार शरीफ में पांच गांव के लोग इन सबसे दूर रहते हैं। होली के दिन यहां न कोई होली खेलता है, न कोई गुलाल लगाता है और न ही कोई पकवान इन गांवों में बनाए जाते हैं। इस दौरान किसी भी घर में चूल्हा तक नहीं जलता है।

क्या है माजरा

दरअसल होली के दिन इस गांव के लोग केवल ईश्वर की भक्ति में ही लीन रहते हैं। दरअसल गांव के लोग नीरस न हों, इसलिए सभी को व्यस्त रखने के लिए ही इन 5 गांवों में अखंड कीर्तन का आयोजन कराया जाता है। यह परंपरा इन गांवों में पिछले 51 वर्षों से चली आ रही है। आज की युवा पीढ़ी भी इस परंपरा का पालन करती है। इन गांवों में होलिका दहन की शाम से ही 24 घंटे के अखंड कीर्तन का आयोजन किया जाता है। इस कार्यक्रम की शुरुआत से पहले ही लोगों के घरों में मीठा भोजना पक कर तैयार हो जाता है। बता दें कि अखंड कीर्तन जबतक समाप्त नहीं हो जाता है। तब तक इन गांवों में चूल्हा नहीं जलाया जाता।

होली न खेलने की वजह

होली न खेलने वाले इन 5 गांवों में पतुआना, बासवन बिगहा, ढीपरापर, नकटपुरा और डेढ़धारा गांव शामिल है। अखंड कीर्तन के दौरान लोग नमक का भी सेवन नहीं करते हैं। चाहे दुनिया में भले ही होली के दिन रंगों से होली खेली जा रही हो लेकिन गांव की परंपरा है कि यहां अखंड कीर्तन ही मनाया जाता है। यहां लोग रंग गुलाल उड़ाने के बजाय हरे रामा-हरे कृष्णा नाम का जाप करते हैं। ऐसा इसलिए भी किया जाता है क्योंकि एक संत बाबा द्वारा गांव वालों को होली के अवसर पर लड़ाई-झगड़े से बचने के लिए अखंड कीर्तन करने की सलाह दी गई थी जो परंपरा  पिछले 51 सालों से चली आ रही है।

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