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अब बोरे बेचेंगे सरकारी टीचर, बिहार सरकार के एक फरमान पर शुरू हुआ विवाद

बिहार के शिक्षा विभाग ने अब शिक्षकों को बोरा बेचने की जिम्मेदारी दी है। विभाग ने शिक्षकों को मिड-डे मील के बोरे 20 रुपए में बेचने का निर्देश दिया है। इस संबंध में विभाग ने जिला के अधिकारियों को पत्र भेजा है।

Reported By : Nitish Chandra Edited By : Swayam Prakash Published : Aug 19, 2023 7:48 IST, Updated : Aug 19, 2023 7:48 IST
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Image Source : REPRESENTATIONAL IMAGE बिहार के टीचरों को बोरा बेचने का आदेश

बिहार सरकार के एक आदेश से बड़ा विवाद पैदा हो गया है। आदेश है कि बिहार सरकार के टीचर अब बाजार में बोरे बेचेंगे। राज्य के शिक्षा विभाग ने निर्देश दिया है कि मिड डे मील के लिए आए बोरे इस्तेमाल के बाद जब खाली हो जाएं तो टीचर उसे बाजारों में जाकर बेच दें। यही नहीं शिक्षा विभाग ने बोरे बेचने का रेट भी तय कर दिया है। विभाग के अनुसार बाजारों में खाली बोरे बीस रुपए में बेचे जाएंगे। इस फरमान का राज्य के टीचर विरोध कर रहे हैं। इतना ही नहीं शिक्षकों के साथ विपक्ष भी इस फरमान का विरोध कर रहा है।

राज्य सरकार के खातों में जमा करना होगा पैसा

दरअसल, बिहार के शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूल के हेडमास्टरों को ये काम दिया है कि उन्हें मिड डे मील के लिए आपूर्ति किए गए खाद्यान्न के खाली बोरे बेचने होंगे। इन बोरों को बेचने का पहले रेट 10 रुपये जिसे बाद में बढ़ाकर 20 रुपये प्रति बोरा कर दिया गया। इन बोरों को बेचने के बाद जो पैसा आएगा उसे जिलों में संचालित राज्य योजना मद के तहत खोले गए बैंक के खातों में शिक्षकों को जमा कराना होगा। बिहार शिक्षा विभाग ने ये आदेश 14 अगस्त को जारी किया था। शिक्षा विभाग के निदेशक मिथिलेश मिश्रा ने इस आदेश के संबंध में सभी जिलों को ये पत्र लिखा है।

शिक्षकों ने आदेश पर जताया विरोध
बता दें कि हाल ही में जाति गणना के काम में लगे शिक्षकों को अब बोरा भी बेचना होगा। शिभा विभाग के अनुसार बीते सालों में बोरों की कीमतों में इजाफा हुआ है। इन बोरों की पहले 10 रूपये की कीमत तय थी जिसे बढ़ाकर अब 20 रूपये कर दिया गया है। शिक्षा विभाग के इस फरमान को लेकर विरोध की आवाजें उठने लगी हैं। शिक्षक संघ के नेताओं का कहना हैं कि चूहे से कुतरे, फटे पुराने बोरे को 20 रूपये में बेचना संभव नहीं है। इसकी इतनी क़ीमत कहीं नहीं मिलेगी, बाजार या कोई निर्धारित दुकान भी सरकार ने तय नहीं की है। ऐसे में ये फैसला तुगलकी फरमान जैसा है। इतना ही नहीं शिक्षकों के सम्मान को भी ये बात ठेस पहुंचाने वाली है। 

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