Most Controversial Books: दुनिया की 5 सबसे विवादित किताबें, भारत समेत कई देशों में हुईं 'बैन', लेखकों पर हुए 'जानलेवा' हमले, आखिर ऐसा क्या लिखा है इनमें?
Most Controversial Books: ऐसा भी होता है, जब छोटी सी बात की वजह से किताब विवादों में जाती है। दशकों से कई किताबें लोगों के गुस्से का कारण अलग-अलग वजहों से बनी हैं। हाल में ही 1988 में प्रकाशित किताब की वजह से मशहूर लेखक सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला किया गया है।
Highlights
- किताब की वजह से सलमान रुश्दी पर हुआ हमला
- बीते करीब 34 साल से विवादों में है उनकी किताब
- दुनिया में और भी कई किताबें विवादों में रही हैं
Most Controversial Books: दुनिया भर में ऐसी बहुत सी किताबें लिखी गई हैं, जिन्हें लोगों से खूब तारीफ मिलती हैं, इन्हें तमाम तरह के पुरस्कार भी दिए जाते हैं। लेकिन कुछ किताबें केवल गलत कारणों की वजह से विवादों में आती हैं। ऐसी ही एक किताब है, ‘द सैटेनिक वर्सेज’। बीते शुक्रवार को इस किताब की ही वजह से इसके लेखक पर जानलेवा हमला हुआ। प्रख्यात लेखक सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क के चौटाउक्वा इंस्टीट्यूशन में एक कार्यक्रम में मंच पर चाकू से हमला किया गया, जिसके बाद उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया। उन्हें फिलहाल वेंटिलेटर से हटा दिया गया है। रुश्दी को चौथी किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज’ 1988 में आने के बाद नौ साल तक छिपकर रहना पड़ा है।
इस किताब को लेकर ईरान के तत्कालीन सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खामनेई ने रुश्दी पर ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए उनकी हत्या के लिए फतवा जारी किया था। यही वजह है कि किताब फिर से सुर्खियों में आ गई है। यह पहली ऐसी किताब नहीं है, जो विवादों में आई हो। किताबों के विवादों में आने के पीछे तमाम तरह के कारण होते हैं, जैसे किताब का कोई कैरेक्टर समाज के किसी तबके को बुरा लग सकता है, कोई दो असंभावित कैरेक्टर्स के बीच इंटिमेट सीन लोगों को पसंद न आए।
हालांकि ऐसा भी होता है, जब छोटी सी बात की वजह से किताब विवादों में आ जाती हैं। दशकों से कई किताबें लोगों के गुस्से का कारण अलग-अलग वजहों से बन रही हैं। यहां आज हम ऐसी ही किताबों के बारे में बात करने जा रहे हैं।
व्लादिमीर नाबोकोव की किताब 'लोलिता'
साहित्य की दृष्टि से अगर देखें, तो किताब को बेहद खूबसूरती से लिखा गया है। लेकिन विवाद का कारण बना इसका डार्क प्लॉट। इसमें एक बेहद बूढ़े आदमी और एक टीनेज लड़की के बीच के शारीरिक संबंध को दर्शाया गया है। जब किताब 1955 में ब्रिटेन में प्रकाशित हुई, तब लोग 'लोलिता' की बोल्ड और डार्क कहानी को पढ़ने के लिए तैयार नहीं थे।
उस समय किताब का रिव्यू करते हुए एक शख्स ने लंदन एक्सप्रेस में कहा, "यह मेरी अब तक की सबसे गंदी किताब" है और "सरासर पोर्नोग्राफी" है। आखिरकार किताब को ब्रिटेन और फ्रांस में बैन कर दिया गया। यह 1958 तक अमेरिका में प्रकाशित नहीं हुई थी।
सलमान रुश्दी की 'द सैटेनिक वर्सेज'
सलमान रुश्दी की ये किताब भी विवादों में रही है। इसे पहली बार 1988 में प्रकाशित किया गया था, यह पैगंबर मोहम्मद की जिंदगी पर आधारित है। हालांकि इस्लाम को मानने वाले लोगों ने कई कारणों से इसे बेहद आपत्तिजनक बताया। ईरान ने सबसे पहले किताब को अपने यहां बैन किया और वहां के तत्कालीन सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामनेई ने रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी कर दिया था।
उन्होंने मुसलमानों को रुश्दी को मारने का आदेश दिया। जिन बुक स्टोर पर ये किताब उपलब्ध थी, वहां बम से हमला किया गया। दुनिया के तमाम देशों ने किताब को बैन कर दिया, इसकी कॉपियों को जलाया गया। रुश्दी को लगातार मिल रही जान से मारने की धमकियों के बाद नौ साल तक पुलिस सुरक्षा के बीच ब्रिटेन में छिपकर रहना पड़ा था।
डी.एच. लॉरेंस की 'लेडी चैटरलीस लवर'
ये किताब ब्रिटेन सहित कई देशों में विवादों में रही। इसमें लेडी चैटरलीस की कहानी बताई गई है, जिसका पति विकलांगता के कारण नपुंसक हो गया था। महिला का अपने ग्राउंडकीपर (किसी तरह के ग्राउंड का प्रबंधन करने वाला) ऑलिवर से अफेयर हुआ। जिसके चलते किताब में अश्लील सामग्री भी है।
किताब को छह देशों- ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, अमेरिका और भारत में बैन किया गया। इसके अलावा, किताब के लेखक लॉरेंस की मौत के 30 साल बाद और इटली में पहली बार प्रकाशित होने के 32 साल बाद तक, 1960 तक इसका अस्पष्टीकृत वर्जन ब्रिटेन में प्रकाशित नहीं किया जा सका था।
हेनरी मिलर की 'ट्रॉपिक ऑफ कैंसर'
यह किताब फ्रांस में 1934 में प्रकाशित हुई थी। किताब अपने स्त्री द्वेष (महिलाओं के खिलाफ सामग्री), यौन ग्राफिक सामग्री, और टॉक्सिक पुस्र्षत्व के चलते विवादों में रही।
अमेरिका में इसके 1961 के प्रकाशन के बाद देश भर की अदालतों में इसे लेकर सुनवाई हुई थी। एक जज ने कहा था कि यह कोई किताब नहीं, बल्कि "एक संडास, एक खुला सीवर, सड़न का एक गड्ढा, मानव भ्रष्टता के मलबे में सड़ा हुआ एक घिनौना कूड़ा है।"
एलिस वाकर की 'द कलर पर्पल'
1982 में आई ये किताब दक्षिण में 1930 के दशक के वक्त की अश्वेत महिलाओं की जिंदगी के बारे में बताती है। इसमें बलात्कार, इमोश्नल शोषण, लिंगवाद, अनाचार और हिंसा वाली सामग्री है। हालांकि किताब में कहानी को आशावादी तरीके से खूबसूरती से लिखा गया है। जिसे बाद में पुलित्जर पुरस्कार भी मिला।
इस किताब की लेखिका एलिस वाकर ये पुरस्कार जीतने वाली पहली अश्वेत महिला बनीं। हालांकि अमेरिका के सभी स्कूलों ने किताब को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने दावा किया कि यह बहुत "अश्लील" है और कई लाइब्रेरियों ने भी ऐसा ही तर्क दिया।