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Hindi News विदेश अमेरिका Moon Landing 53 Year: चांद पर लैंडिंग के 53 साल, वापस लौटने से पहले याद आया वो 'सीक्रेट मिशन', कैमरा लेकर चंद्रमा की तरफ भागे थे नील आर्मस्ट्रॉन्ग

Moon Landing 53 Year: चांद पर लैंडिंग के 53 साल, वापस लौटने से पहले याद आया वो 'सीक्रेट मिशन', कैमरा लेकर चंद्रमा की तरफ भागे थे नील आर्मस्ट्रॉन्ग

यहां चट्टानों के सैंपल लेने के बाद नील और बज अपने अंतरिक्षयान की तरफ बढ़ गए थे। उन्हें अगले एक घंटे में वापस धरती के लिए रवाना होना था। जब नील को अपने अंतरिक्षयान की तरफ जाना था, तभी उन्हें एक और काम याद आया।

Apollo 11 Mission- India TV Hindi Image Source : INDIA TV Apollo 11 Mission

Highlights

  • चांद पर कदम रखते ही नील ने पूरा किया था सीक्रेट मिशन
  • नील आर्मस्ट्रॉन्ग के साथ बज एल्ड्रिन भी मौजूद थे
  • नील तस्वीर के लिए गड्ढे की तरफ कैमरा लेकर भागे थे

Moon Landing 53 Year: चंद्रमा अंतरिक्ष की दुनिया की वो जगह है, जो हमेशा से ही धरती पर बसे इंसानों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। एक समय पर दुनिया के दो सबसे बड़े सुपर पावर देश रूस और अमेरिका चांद तक पहुंचने के लिए एक दूसरे से रेस लगा रहे थे। हालांकि 53 साल पहले अमेरिका ने यह रेस जीत ली। 20 जुलाई के दिन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के एंस्ट्रोनॉट नील आर्मस्ट्रॉन्ग चांद पर कदम रखने वाले दुनिया के पहले इंसान बन गए थे। नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज एल्ड्रिन ने चांद पर चट्टानें एकत्रित करते हुए वहां दो घंटे बिताए थे। लेकिन क्या आप ये बात जानते हैं कि यहां नील ने एक और मिशन को पूरा किया।   

यहां चट्टानों के सैंपल लेने के बाद नील और बज अपने अंतरिक्षयान की तरफ बढ़ गए थे। उन्हें अगले एक घंटे में वापस धरती के लिए रवाना होना था। जब नील को अपने अंतरिक्षयान की तरफ जाना था, तभी उन्हें एक और काम याद आया। ये काम उन्हें अपोलो 11 मिशन के वैज्ञानिक प्रोफेसर फरौक एल-बाज ने दिया था। फरौक ने एस्ट्रोनॉट्स को कुछ तस्वीरें लेने की ट्रेनिंग दी थी। इन तस्वीरों को आगे के कुछ  अवसरों के लिए लिया जाना था। यानी इसी क्षेत्र से जुड़ी अन्य खोजों में इनका इस्तेमाल होना था। जिसके माध्यम से चांद की सतह की मिट्टी की मोटाई का पता लगाया जाता।

इस काम को लेकर उत्साहित थे नील 

एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अल-बाज ने कहा, 'आर्मस्ट्रांग वास्तव में इसे लेकर काफी उत्साहित थे, वह सभी तरह का ऐसा डाटा एकत्रित करना चाहते थे, जो सारे अपोलो मिशनों में हमारी मदद कर सके।' लेकिन ऐसा तभी संभव हो पाता, जब उसके लिए जरूरी चीजों को एकत्रित किया जा सकता। यानी इन चीजों पर आगे का अध्ययन होता और फिर खोज को अंजाम तक पहुंचाया जाता। ऐसे में धरती के लिए लौटने से थोड़ी देर पहले उन्हें एक ऐसा गड्ढा मिला जो ठीक वैसा ही था, जैसा शोधकर्ता चाहते थे।

प्रोफेसर अल-बाज ने कहा, 'नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने ऐसा काम किया है, जिसके लिए उनकी हमेशा तारीफ की जाएगी। हमें चंद्र की मिट्टी की मोटाई का पता लगाना था। जो चट्टानी सतह वाली जमीन के ऊपर थी।' टक्कर के कारण गड्ढे का केंद्र चट्टानी होगा, इससे हम इसकी सतह की मोटाई का अंदाजा लगा सकते हैं। नील अंतरिक्षयान में जाने के बजाय दूर के गड्ढे की ओर भागे। वह गड्ढे के किनारे पर खड़े हो गए और एक तस्वीर ली। बाद में यह तस्वीर मेरे और मेरी टीम के लिए बेहद अहम साबित हुई थी।'

चर्चा में आए थे धूल और तिलचट्टे

हाल में ही इसी मिशन के तहत एकत्रित की गई धूल और तिलचट्टे भी खबरों में आए थे। नासा ने चंद्रमा से लाई धूल और तिलचट्टों पर अपना दावा करते हुए कहा था कि किसी अन्य को इनकी नीलामी करने का कोई अधिकार नहीं है। अंतरिक्ष एजेंसी ने बोस्टन स्थित ‘आरआर ऑक्शन’ से ‘1969 अपोलो 11’ अभियान के दौरान एकत्र की गई चंद्रमा की उस धूल की बिक्री पर रोक लगाने को कहा था, जो यह पता करने के लिए कुछ तिलचट्टों को खिलाई गई थी कि क्या चंद्रमा की चट्टानों में स्थलीय जीवन के लिए खतरा बनने वाला किसी प्रकार का पैथोजन होता है या नहीं।

नासा के एक वकील ने नीलामीकर्ता को लिखे एक पत्र में कहा है कि इस धूल और तिलचट्टों पर अब भी संघीय सरकार का अधिकार है। ‘आरआर’ ने कहा कि चंद्रमा की करीब 40 मिलीग्राम धूल और तिलचट्टों के तीन कंकाल समेत प्रयोग में इस्तेमाल की गई सामग्री कम से कम चार लाख डॉलर में बिकने की संभावना थी, लेकिन उसे नीलाम की जाने वाली वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है। ‘अपोलो 11’ अभियान के दौरान चंद्रमा से 21.3 किलोग्राम से अधिक चंद्र चट्टान को पृथ्वी पर लाया गया था और इसे यह पता लगाने के लिए कीड़ों, मछलियों एवं कुछ अन्य जीवों को खिलाया गया था कि इससे उनकी मौत तो नहीं होती।

जिन तिलचट्टों को चंद्रमा की धूल खिलाई गई थी, उन्हें मिनेसोटा विश्वविद्यालय लाया गया था, जहां कीट वैज्ञानिक मैरियन ब्रूक्स ने उनका अध्ययन करने के बाद कहा था, ‘मुझे संक्रामक एजेंट मौजूद होने का कोई सबूत नहीं मिला है।’

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