Jupiter Picture: जैसे ही बृहस्पति अपनी कक्षा में सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाता है, तभी एक पॉइंट पर ऐसा होता है, जब वह पृथ्वी से दिखाई देने वाले सूर्य के विपरीत दिशा में पहुंच जाता है। सोमवार को 59 साल में ऐसा पहली बार हुआ है, जब सोलर सिस्टम का सबसे बड़ा ग्रह ब्रहस्पति उस पोजीशन में पहुंचने के बावजूद पृथ्वी के सबसे करीब था। वह पृथ्वी से महज 59,06,29,248 किलोमीटर की दूरी पर था। अब ऐसी घटना 107 साल बाद देखने को मिलेगी। अगली बार ग्रह धरती के इतना करीब साल 2129 में आएगा, जिसकी वजह से सोमवार को हुई ये खगोलीय घटना काफी अद्भुत कही जा रही है।
यह ग्रह, जो सूर्य के चारों ओर एक पूरा चक्कर लगाने में 11 साल से अधिक का समय लेता है, अपनी कक्षा में सूर्य के बिल्कुल विपरीत था और यही चीज इसे पृथ्वी से देखे जाने वाले आकाश में सबसे चमकीली चीजों में से एक बनाती है। बृहस्पति आकाश में -2.9 मैग्नीट्यूड के साथ चमकीला दिखाई दिया। इससे पहले ऐसा कहा गया था कि 53 चंद्रमाओं वाला यह ग्रह रात भर आसमान में रहेगा। पृथ्वी के सबसे नजदीक बृहस्पति शाम 5:29 बजे के बाद आसमान में दिखाई दिया और 27 सितंबर को सुबह 5:31 बजे तक ये नजारा दिखता रहा।
गार्डन से ली गई ब्रहस्पति की तस्वीर
एस्ट्रोफिजिसिस्ट एंड्रयू मैकार्थी ने इस विशाल गैसीय ग्रह की तस्वीर ली है। वह पहले ही बृहस्पति की कुछ खूबसूरत तस्वीरें ले चुके हैं, जिसमें यह अंतरिक्ष में तैरते कांच के गोले जैसा दिखता है। डेलीमेल की खबर के मुताबिक, ये तस्वीरें उन्होंने अपने गार्डन से ली हैं। मैकार्थी की तस्वीरों में बृहस्पति के लाल धब्बे और बादल साफ देखे जा सकते हैं। इंस्टाग्राम पर मैकार्थी के फॉलोअर्स उन्हें कॉस्मिक-बैकग्राउंड के नाम से जानते हैं। लोगों ने उनकी ब्रहस्पति ग्रह की तस्वीरों को 'बेस्ट शॉट' करार दिया है। बृहस्पति सूर्य के क्रम में हमारे सौर मंडल का पांचवां और सबसे बड़ा ग्रह है। यह ग्रह केवल गैसों से बना है, जिसमें ज्यादातर हाइड्रोडोन और हीलियम हैं।
यूरेनस भी है एक बेहद खास ग्रह
शोध के अनुसार, यूरेनस अपनेआप में एक बेहद ही खास ग्रह है। सौरमंडल के बाकी ग्रह अपनी धुरी पर सूर्य की परिक्रमा करते हैं। यूरेनस का केवल एक हिस्सा सूर्य की ओर रहता है। यह सूर्य से अधिक दूर नहीं है, फिर भी यह एक ठंडा ग्रह है। हालांकि 1986 में मानव निर्मित मशीन वोयागर-2 अंतरिक्ष यान इसके करीब से गुजरा था। उससे पता चला कि इस ग्रह का वायुमंडल हाइड्रोजन, हीलियम और मीथेन से बना है। इसके कई चंद्रमा हैं। और इसका चुंबकीय क्षेत्र भी बहुत मजबूत है। इस ग्रह पर हीरों की बारिश होती है। लेकिन ये धरती वाली बारिश की तरह नहीं है। बल्कि वैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया की वजह से बनते हैं।
यूरेनस पर क्यों होती है हीरों की बारिश?
वैज्ञानिकों का मानना है कि गैस से बने इस ग्रह के अंदरूनी हिस्सों में वातावरणीय दबाव अधिक है। इसके कारण हाइड्रोजन और कार्बन के बॉन्ड टूट जाते हैं। जिसके कारण हीरे बरसने लगते हैं। यूरेनस के आकार की बात करें, तो यह पृथ्वी से 17 गुना बड़ा है। हाल ही के एक प्रयोग में वैज्ञानिकों ने यहां हीरों की बारिश होने की जानकारी दी थी।
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