वाशिंगटन: अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो (NATO) गठबंधन की सदस्यता के लिए दो देशों ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है। विदेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्वीडन और फिनलैंड इस बात पर सहमत हो गए हैं कि वह मई 2022 तक नाटो सदस्यता पाने के लिए आवेदन करेंगे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल रूस को लेकर उठ रहा है क्योंकि उसने फिनलैंड को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी।
दरअसल रूस ने इससे पहले चेतावनी दी थी कि अगर ये दो देश नाटो में शामिल होते हैं तो रूस बाल्टिक देशों और स्कैंडिनेविया के पास परमाणु हथियार तैनात करेगा। ऐसे में ये तय माना जा रहा है कि जब ये दोनों देश नाटों में शामिल होंगे तो रूस आने वाले समय में दुनिया में टेंशन बढ़ा सकता है।
गौरतलब है कि फिनलैंड का 1300 किलोमीटर तक का बॉर्डर रूस से लगा हुआ है। ऐसे में दुनिया में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर रूस, फिनलैंड के खिलाफ किस तरह की रणनीति अपनाएगा।
यहां ये भी बता दें कि नाटो का मतलब उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization) है। नाटो के सदस्य देशों की संख्या अभी 30 है। इसका निर्माण 1949 में हुआ था और इसका नेतृ्त्व अमेरिका करता है। अगर फिनलैंड और स्वीडन को इसकी सदस्यता मिल जाती है तो नाटो के सदस्य देशों की संख्या 32 हो जाएगी।
नाटो से क्यों लगता है रूस को डर?
नाटो देशों की संयुक्त सेना हमेशा अपनी सरहद पर तैनात रहती है। ऐसे में रूस को डर है कि नाटो की सेना उसको नुकसान पहुंचा सकती है और रूस ये बात बिल्कुल नहीं चाहता कि नाटो की सेना उसकी सीमा पर दस्तक दे। ऐसा इसलिए भी है कि नाटो में कई सदस्य देश हैं। इनकी संयुक्त सेना से लड़ने में रूस को नुकसान पहुंच सकता है।
ऐसे में अगर नाटो में 2 देश और जुड़ जाएंगे तो नाटो की ताकत और भी ज्यादा बढ़ जाएगी और फिर रूस इन देशों को अपनी दादागीरी नहीं दिखा पाएगा। रूस ये भी मानता है कि नाटो में जितने देश शामिल होंगे, उससे नाटो समेत अमेरिका की भी ताकत बढ़ेगी क्योंकि नाटो का नेतृत्व अमेरिका करता है।
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