Tension between America and China over Taiwan: अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंनी पेलोसी की अगस्त माह में हुई ताइवान यात्रा के बाद से ही अमेरिका और चीन के बीच तनाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इस बीच ताइवान स्ट्रेट में अमेरिका ने अपना सातवां बेड़ा भेज दिया है। ताइवान जलडमरू मध्य में अमेरिका का युद्धपोत पहुंचने से सिर्फ चीन ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में खलबली मच गई है। आखिर क्या वजह है कि चीन की हर धमकियों को अमेरिका नजरअंदाज कर रहा है। अमेरिका वही कर रहा है, जो उसे करना है। सुपर पॉवर अमेरिका की इस जिद से ड्रैगन की सांसें फूल रही हैं। चीन चाहकर भी अमेरिका का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है। इससे दोनों देशों के बीच युद्ध की आहट तेज होने लगी है।
खबर है कि ताइवान स्ट्रेट में अमेरिका के एक नहीं बल्कि दो-दो युद्धपोत दस्तक दे चुके हैं। इससे अमेरिका और चीन के बीच हाईटेंशन सातवें आसमान पर पहुंच गई है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अमेरिका के इस कदम से बिलकुल बौखला गए हैं। अमेरिका का यह सातवां बेड़ा है, जो दुनिया का सबसे भीषण और प्रलयकारी युद्धपोत कहा जाता है। इस युद्धपोत का आसानी से मुकाबला कर पाना दुनिया के किसी भी देश के लिए आसान नहीं है। दूसरे विश्वयुद्ध में भी अमेरिका का यह सातवां बेड़ा पूरी दुनिया को अपनी ताकत का एहसास करा चुका है। तब से इसका नाम दुनिया के सबसे खतरनाक युद्धपोतों में होता है। यह जिधर मुड़ जाता है, कहते हैं उधर महाविनाश होना तय है।
क्या चीन को युद्ध के लिए ललकार रहा अमेरिका
आखिर क्या वजह है कि ताइवान क्षेत्र में अमेरिका की दखलंदाजी लगातार बढ़ती जा रही है। चीन की कोई भी धमकी अमेरिका पर कुछ भी असर नहीं दिखा पा रही है। अमेरिका के सातवें बेड़े के ये दोनों युद्ध पोत यूएस एंटीटैम और यूएएस चांसलर विले हैं। सातवें बेड़े का कहना है कि यह उसका रूटीन आवागमन है। जो कि ताइवान जलडमरूमध्य से होकर गुजरे हैं। क्या यह चीनी धमकी के मद्देनजर अमेरिका की ओर से दी जा रही ड्रैगन को युद्ध की चुनौती है। क्या अमेरिका का मकसद चीन को युद्ध के लिए ललकारना है या फिर वह चीन के हौसले को पस्त करना चाहता है। क्या अमेरिका चीन को इस बात का एहसास कराना चाहता है कि सुपरपावर को किसी मामले में ड्रैगन भविष्य में कोई उपदेश देने का प्रयास न करे।
आप बिल्कुल सही समझ रहे हैं। अमेरिका इस बहाने चीन को अपनी ताकत का एहसास कराना चाहता है। चीन और अमेरिका एक दूसरे के जानी दुश्मन कहे जाते हैं। इसीलिए दोनों देश एक दूसरे को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते। यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध मामले में जब चीन अमेरिका के खिलाफ और रूस के पक्ष में बयानबाजी कर रहा था तो इसी बीच अमेरिका ने ताइवान में अपनी जबरन मौजूदगी दिखाकर चीन को उसके ही लहजे में जवाब दिया। चीन ताइवान पर दशकों से अपना अधिकार जमाता रहा है। इसीलिए अमेरिका ताइवान में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। ताकि वह चीन को टेंशन दे सके।
अमेरिका की आंधी को चीन की चुनौती
अमेरिका की आंधी कहे जाने वाले सातवें बेड़े के ताइवान स्ट्रेट में पहुंचने के बाद चीन भी चुप बैठने वाला कहां था। चीन ने अमेरिका को उसी लहजे में जवाब देते हुए अपने भी कई युद्धपोत ताइवान जलडमरू मध्य की ओर रवाना कर दिए हैं। बताया जा रहा है कि चीन ने अपने आठ युद्धपोत और 23 लड़ाकू विमानों से पूरे ताइवान की घेराबंदी कर दी है। इससे दोनों देशों में युद्ध की आशंका प्रबल होती जा रही है। दुनिया में जिस तरह से तनाव बढ़ रहा है, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन और अमेरिका में कभी भी भिड़ंत हो सकती है।
फ्रांस और जर्मनी भी हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में हुए सक्रिय
अमेरिका और चीन के बीच इस तरह से उपजे तनाव के मध्य उधर फ्रांस और जर्मनी भी सक्रिय हो गए हैं। फ्रांस और जर्मनी ने हिंद व प्रशांत महासागर क्षेत्र में अपने लड़ाकू विमान भी भेज दिए हैं। दुनिया के अन्य देश खलबली मचा देने वाली इन घटनाओं पर पल-पल की अपडेट पर नजर रखे हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जर्मनी ने आस्ट्रेलिया के साथ संयुक्त अभ्यास के लिए 13 विमान भेजे जाने की बात कही है। मगर वजह जो भी हो, लेकिन अमेरिका और चीन के बीच तनाव अब चरम सीमा पर है। यह तनाव दोनों देशों को किस ओर ले जाएगा, इस बारे में कुछ भी कह पाना संभव नहीं है।
Image Source : India tvAmerica-china collision
भारत और चीन के बीच पहले ही तनातनी
भारत भी अमेरिका और चीन के बीच चल रही जुबानी जंग और युद्धक विमानपोतों की आवाजाही पर पैनी नजर बनाए हुए है। अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ने से भारत को फायदा ही होना है। क्योंकि चीन भारतीय सीमा क्षेत्र में भी लगातार दखलंदाजी कर रहा है। इससे भारत और चीन में भी टेंशन चरम पर है।
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