वॉशिंगटन: अमेरिका का मानना है कि चीन की अर्थव्यवस्था डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुरूप नहीं है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन अपने मौजूदा स्वरूप में बीजिंग और उसकी औद्योगिक नीति से निपटने में सक्षम नहीं है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन चाहता है कि ‘विकासशील देश’ को नये सिरे से परिभाषित किया जाए। उसका कहना है कि विश्व की दूसरी सबसे बडी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद चीन अब भी विकासशील देशों की श्रेणी में आता है और इस कारण उसे डब्ल्यूटीओ के अंतर्गत कुछ लाभ हासिल हो जाते हैं।
अमेरिका के उप-व्यापार प्रतिनिधि और डब्ल्यूटीओ में देश के राजदूत डेनिस शीया ने कहा कि बहुत से देशों ने डब्ल्यूटीओ में खुद को विकासशील देश बताया है। डब्ल्यूटीओ में विकासशील देश होने के नाते आप अतिरिक्त लाभ ले रहे हैं और आपको नियमों से छूट प्राप्त है। उन्होंने कहा कि जब आप इनमें से कुछ देशों को देखते हैं तो आपको ताज्जुब होता है कि वे डब्ल्यूटीओ में खुद को विकासशील होने का दावा करते हैं। उदाहरण के लिए जी-20 के 10 देशों ने डब्ल्यूटीओ में खुद को विकासशील देश बताया हुआ है।
उन्होंने अमेरिका के शीर्ष थिंकटैंक में से एक सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के समक्ष कहा कि प्रति व्यक्ति सर्वाधिक जीडीपी वाले छह में से पांच देश डब्ल्यूटीओ में विकासशील देश होने का दावा करते हैं। शीया ने कहा कि अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि बॉब लाइटहाइजर ने दिसंबर में ब्यूनस आयर्स में हुए अंतर-मंत्रालयी सम्मेलन में इस मुद्दे को उठाया था और इस बात को लेकर डब्ल्यूटीओ में वास्तविक बहस हो रही है कि क्या विकासशील देशों के अंतर को अधिक स्पष्ट तरीके से परिभाषित किये जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि हमें यह समझने की जरूरत है कि चीन की अर्थव्यवस्था डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुरूप नहीं है। शीया ने कहा कि अपने वर्तमान स्वरूप में डब्ल्यूटीओ चीन की समस्या को सुलझाने में सक्षम नहीं है। उन्होंने अन्य देशों से इन मुद्दों को उठाने का आह्वान किया।
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