संयुक्त राष्ट्र: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि दुनिया को समुद्रों को ‘विस्तार और बहिष्कार’ की दौड़ से बचाना होगा। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अनुरोध किया कि वह नियम आधारित विश्व व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए एक सुर में आवाज उठाए। प्रधानमंत्री मोदी ने पड़ोसी देश चीन के संदर्भ में उक्त बात कही जो पिछले कुछ समय से हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य विस्तार कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत की अध्यक्षता के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बनी आम सहमति ने दुनिया को समुद्री सुरक्षा की दिशा में आगे का रास्ता दिखाया।
‘हमें समुद्री संसाधन का अति दोहन नहीं करना चाहिए’
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने समुद्रों को ‘हमारी साझा विरासत’ करार दिया और कहा कि ‘हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि हमें समुद्री संसाधन का सिर्फ उपयोग करना है और उनका दुरुपयोग या अति दोहन नहीं करना चाहिए। हमारे समंदर अंतरराष्ट्रीय व्यापार की जीवन रेखा हैं। हमें विस्तार और बहिष्कार की दौड़ से उनकी सुरक्षा करनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को नियम आधारित विश्व व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए एक सुर में आवाज उठानी होगी।’ हिन्दी में अपने वक्तव्य में मोदी ने कहा कि अगस्त में भारत की अध्यक्षता के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बनी आम सहमति ने दुनिया को समुद्री सुरक्षा की दिशा में आगे का रास्ता दिखाया।
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ रहा चीन का हस्तक्षेप
गौरतलब है कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य हस्तक्षेप की पृष्ठभूमि में भारत, अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियां संसाधनों से समृद्ध इस क्षेत्र को मुक्त, स्वतंत्र और समृद्ध बनाए रखने की जरूरत पर बल दे रही हैं। चीन का दावा है कि दक्षिण चीन सागर के सभी विवादित द्वीप उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं जबकि ताइवान, फिलीपीन, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम सभी उसके किसी न किसी भाग के अपना होने का दावा करते हैं। बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठानों का निर्माण किया है। चीन का पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ भी सीमा विवाद है।
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