अमेरिका ने ईरान से आर्थिक संबंध रखने वाले देशों को दी चेतावनी
भारत उन देशों में से एक है जिसे भारत-अमेरिका संबंधों की सामरिक प्रकृति, चाबहार बंदरगाह की सामरिक महत्ता और उसकी तेजी से बढ़ती ऊर्जा जरुरतों के कारण कुछ छूट मिल सकती है।
वाशिंगटन: अमेरिका ने ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों के चार नवंबर को पूरी तरह लागू होने बाद भी उसके साथ आर्थिक संबंध रखने वाले देशों से मूल रूप से अलग नियमों से निपटने की चेतावनी दी है। विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने यहां शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘इस बारे में कोई गलतियां ना करें, चार नवंबर के बाद से उन देशों के साथ मूलत: अलग नियमों से निपटा जाएगा जो ईरान के साथ आर्थिक गतिविधियों में लिप्त रहेंगे।’’ ट्रंप प्रशासन द्वारा इसमें कोई छूट ना दिए जाने से भारत पर इसका काफी असर पड़ सकता है। भारत ईरान से तेल का सबसे बड़ा आयातक है और वह अभी उसके साथ मिलकर सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह बना रहा है।
दोनों देशों के अधिकारी इन दोनों मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। इसमें विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ के साथ विदेश विभाग के फॉगी बॉटम मुख्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से हुई मुलाकात भी शामिल है। पोम्पिओ के संवाददाता सम्मेलन के तुरंत बाद यह मुलाकात हुई। पोम्पिओ ने कहा, ‘‘चार नवंबर की समयसीमा से पहले कई फैसले लंबित हैं जिसमें संभावित छूट को लेकर भी फैसले शामिल हैं और हम इनमें से प्रत्येक पर काम कर रहे हैं।’’
भारत उन देशों में से एक है जिसे भारत-अमेरिका संबंधों की सामरिक प्रकृति, चाबहार बंदरगाह की सामरिक महत्ता और उसकी तेजी से बढ़ती ऊर्जा जरुरतों के कारण कुछ छूट मिल सकती है। भारत ने पहले ही ईरान से तेल लेना कम कर दिया है लेकिन इसकी संभावना ना के बराबर है कि वह उससे बिल्कुल भी तेल का आयात ना करें।
पोम्पिओ ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘आप देख सकते हैं कि कई देशों ने चार नवंबर की समयसीमा से पहले ही ईरान से बाहर निकलने और उसके साथ व्यापार बंद करने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।’’ अमेरिकी विदेश मंत्री ने ईरान की ‘‘दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों’’ की सूची में हूतियों को खाड़ी देशों के हवाईअड्डों पर हमले करने के लिए मिसाइलों की कथित तौर पर आपूर्ति करना भी शामिल किया है।
पोम्पिओ ने ईरानी नेतृत्व के साथ बातचीत करने को लेकर पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी की भी आलोचना की। उन्होंने कहा, ‘‘केरी ने जो किया वह अनुचित और अप्रत्याशित था। पूर्व विदेश मंत्री दुनिया में आतंकवाद के सबसे बड़े प्रायोजक देश के साथ बातचीत कर रहे थे। आपको अमेरिकी इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिल सकता और केरी को इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए था। यह अमेरिका की विदेश नीति से अलग है।’’