वाशिंगटन: अमेरिकी सैनिकों की हत्या के लिये के लिए अफगान आतंकवादियों द्वारा रूसी इनाम स्वीकार किये जा सकने संबंधी खुफिया जानकारी से अमेरिका-तालिबान समझौता समाप्त नहीं हुआ है, या राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हजारों और सैनिकों को वापस बुलाने की योजना प्रभावित नहीं हुई। हालांकि, इसने इस समझौते के आलोचकों को यह कहने का एक और कारण दिया कि तालिबान पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए।
खुफिया अधिकारियों के अनुसार इनाम संबंधी जानकारी 27 फरवरी को राष्ट्रपति को नियमित रूप से दी जाने वाली खुफिया जानकारी में शामिल की गई थी और इसके दो दिन बाद अमेरिका और तालिबान ने कतर में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। जून के अंत में इनाम संबंधी खबरों के बाद विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को वीडियो कांफ्रेंस के जरिये स्पष्ट किया कि अमेरिका को उम्मीद है कि तालिबान अपनी प्रतिबद्धताओं पर खरा उतरेगा। इस समझौते के तहत अमेरिका मई 2021 तक अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुलायेगा।
समझौते के आलोचकों में से एक आर माइक वाल्ट्ज ने कहा, ‘‘इस समझौते को आगे बढ़ाने के बारे में मुझे गंभीर चिंता है।’’ व्हाइट हाउस ने कहा था कि राष्ट्रपति को इस खुफिया सूचना के बारे में जानकारी नहीं है। सैन्य विशेषज्ञों ने इस बात का जिक्र किया कि तालिबान को अमेरिकियों की हत्या के लिये किसी वित्तीय प्रोत्साहन की जरूरत नहीं है। ‘अमेरिकी इंस्टीट्यूट ऑफ पीस’ में अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया पर एक विशेषज्ञ स्कॉट स्मिथ ने कहा, ‘‘इनाम लिये जा रहे या नहीं, यह मायने नहीं रखता। हम तालिबान के बारे में इस चीज से कोई राय बनाएंगे कि वह इस समझौते का सम्मान करता है, या नहीं।’’
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