वाशिंगटन: अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने भारत जैसे साझेदारों के साथ संबंध मजबूत करने के अमेरिका के प्रयासों को रेखांकित किया ताकि बीजिंग को अंतराष्ट्रीय कानून आधारित व्यवस्था का सम्मान करना सिखाया जा सके। उन्होंने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र दुनियाभर में अपनी ताकत दिखाने की चाह रखने वाले चीन के साथ ‘‘शक्ति की प्रतिस्पर्धा’’ का केंद्र है।
हवाई में ‘डेनियल के इनोऐ एशिया-पेसिफिक सेंटर फॉर सिक्युरिटी स्टडीज’ में अपने संबोधन में एस्पर ने कहा कि सत्तारूढ़ चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी के एजेंडा को आगे बढ़ाने की कवायद में पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए)आधुनिकिकरण की अपनी आक्रामक योजना पर काम कर रही है जिसके बूते वह सदी के मध्य तक विश्व स्तरीय सेना के लक्ष्य को पाना चाहती है।
उन्होंने कहा, ‘‘इससे दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में पीएलए का उकसाने वाला बर्ताव निस्संदेह बढ़ेगा। यहीं नहीं, उन स्थानों पर भी जिन्हें चीन की सरकार अपने हितों के लिए महत्वपूर्ण मानती है।’’ बीजिंग 13 लाख वर्ग मील में फैले लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर को अपना संप्रभु क्षेत्र बताता है। इस पर ब्रुनेई, मलेशिया, फिलिपीन, ताईवान और वियतनाम भी अपना-अपना दावा जताते हैं।
चीन क्षेत्र में कृत्रिम द्वीपों पर अपने सैन्य अड्डे बना रहा है। एस्पर ने कहा कि अमेरिका के सैन्य बलों के विपरित पीएलए राष्ट्र या संविधान की सेवा करने वाली सेना नहीं है बल्कि यह एक राजनीतिक दल चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति निष्ठा रखती है और दुनियाभर के नियम और कानूनों को कमतर करने के पार्टी के प्रयासों में मदद करती है।
उन्होंने कहा कि साझेदारों के साथ संबंधों को मजबूत करने के अलावा अमेरिका दक्षिण एवं दक्षिणपूर्वी एशिया में नए एवं उभरते साझेदारों के साथ संबंधों का विस्तार करने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मसलन, हमने भारत के साथ रक्षा संबंध बढ़ाए हैं और उसे प्रमुख रक्षा साझेदार बनाया। उनके साथ पिछले साल हमने पहला सैन्य अभ्यास किया तथा इन गर्मियों में हमने साझा नौसैन्य अभ्याय भी किया।
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