न्यूयॉर्क: द कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने भारत, अल साल्वाडोर, तुर्की और मिस्र के पत्रकारों को मौत के खौफ, जेल की सजा और निर्वासन के डर के बावजूद प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए वार्षिक अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता पुरस्कारों से सम्मानित किया है। सीपीजे के कार्यकारी निदेशक जोएल सिमोन ने कहा है कि दुनियाभर में पत्रकारों के खिलाफ जोखिम बढ़ रहा है और रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी चुनाव जीतने के बाद से अब अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है क्योंकि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने मुख्यधारा के मीडिया को धूर्त बताया है और चुनाव के बाद से उन्होंने एक भी संवाददाता सम्मेलन आयोजित नहीं किया है। (विदेश की बाकी खबरों के लिए पढ़ें)
समारोह से पहले सिमोन ने कहा, भयभीत करने वाला प्रतिकूल माहौल बना हुआ है। समाचार वेबसाइट स्क्रॉल डॉट इन को खबर मुहैया करवाने वाली भारत की मालिनी सुब्रमण्यम ने छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी खबर की थी जिसके बाद उन्हें पुलिस ने प्रताडि़त किया था। मालिनी ने कहा कि यह पुरस्कार इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इससे सरकार को संदेश जाएगा कि वह भी निगरानी के दायरे में है।
मध्य अमेरिका की पहली ऑनलाइन पत्रिका अल फारो की जांच इकाई साला नेगरा के सह संस्थापक ऑस्कर मार्टिनेज को भी सम्मानित किया गया। हत्या की धमकी मिलने पर उन्हें तीन हफ्तों के लिए देश छोड़कर भागना पड़ा था। तुर्की के दैनिक जमहुरियत के प्रमुख संपादक जान दुनदार को भी सम्मानित किया गया। उन्होंने सरकार की खुफिया एजेंसी के बारे में एक लेख प्रकाशित किया था जिसके लिए उन्हें 26 नवंबर, 2015 को गिरफ्तार कर लिया गया था। वह 92 दिनों तक जेल में रहे थे।
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