न्यूयॉर्क: हजारों साल पहले दक्षिण भारत में एक नई मानव सभ्यता ने जन्म लिया था। सैकड़ों सालों तक यह सभ्यता फलती-फूलती रही। इस सभ्यता के जो अवशेष आज उपलब्ध हैं, उन्हें देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि वह कितनी सुनियोजित और भव्य थी। उस जमाने की कलाकृतियां हों या बर्तन, सभी मानव जाति की उत्कृष्टता की जीता-जागता उदाहरण हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि एक दिन इसका नामोनिशान मिट गया? इस सवाल का जवाब भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक ने अपने अध्ययन से खोजने की कोशिश की है।
भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक निशांत मलिक के द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से मॉनसून के स्वरूप में बदलाव प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के उदय और पतन का कारण हो सकता है। निशांत मलिक ने अपने इस अध्ययन में उत्तर भारत के 5,700 वर्ष के आंकड़ों का विश्लेषण किया। अमेरिका स्थित रोचेस्टर इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (RIT) के निशांत मलिक ने अपने विश्लेषण में उत्तर भारत में प्राचीन काल में जलवायु के स्वरूप का अध्ययन करने के लिए एक नई गणितीय पद्धति का उपयोग किया।
‘चाओस: एन इंटरडिसीप्लिनरी जर्नल ऑफ नॉनलिनियर साइंस’ में प्रकाशित अनुसंधान रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया में गुफाओं में जमा खनिज निक्षेप में विशेष रासायनिक अवस्थाओं की मौजूदगी का पता लगाकर वैज्ञानिक क्षेत्र में पिछले 5,700 साल तक की मॉनसून की बारिश का रिकॉर्ड बना सके। इस बारे में बात करते हुए मलिक ने कहा कि जलवायु को समझने के लिए विशिष्ट रूप से इस्तेमाल गणितीय पद्धतियों के साथ प्राचीन जलवायु का अध्ययन करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मलिक ने कहा कि सिंधु घाटी सभ्यता का पतन क्यों हुआ, इस बारे में अब तक अनेक मान्यताएं हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि अब तक किसी गणितीय प्रणाली से यह काम नहीं किया गया। बता दें कि सिंधु घाटी की सभ्यता के पतन को लेकर तमाम तर्क दिए जाते हैं जिनमें किसी बाहरी सभ्यता के आक्रमण से लेकर सिंधु नदी में आई बाढ़ तक को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
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