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Hindi News विदेश यूरोप फ्रांस के दक्षिणपंथी नेता बार्डेला को NATO सैन्य कमान का हिस्सा होने के मामले में क्यों मारनी पड़ी पलटी? जानें पूरा मामला

फ्रांस के दक्षिणपंथी नेता बार्डेला को NATO सैन्य कमान का हिस्सा होने के मामले में क्यों मारनी पड़ी पलटी? जानें पूरा मामला

फ्रांस में संसदीय चुनाव की घड़ी नजदीक है। ऐसे में दक्षिणपंथी नेता बार्डेला अपनी पार्टी के पुराने स्टैंड से पीछे हट गए हैं। उनकी पार्टी की ओर से कहा गया था कि वह सत्ता में आते हैं तो फ्रांस को नाटो सैन्य कमांड से बाहर कर देंगे। मगर अब उनका कहना है कि युद्ध के दौर में यह फैसला घातक हो सकता है।

नाटो सैन्य कमांड। - India TV Hindi Image Source : AP नाटो सैन्य कमांड।

विलेपिंटे (फ्रांस): फ्रांस में संसदीय चुनाव ज्यों-ज्यों करीब आ रहा है, त्यों-त्यों नेताओं में जीत की चिंताएं भी बढ़ती जा रही हैं। फ्रांस के आगामी संसदीय चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखने वाले एक दक्षिणपंथी नेता ने बुधवार को अपनी पार्टी द्वारा पूर्व में किए गए नाटो की रणनीतिक सैन्य कमान से बाहर निकलने के वादे से पलटी मार ली है। वह इस मुद्दे से पूरी तरह पीछे हट गए हैं। इसे उस पार्टी के नए स्टैंड के तौर पर देखा जा रहा है। जबकि पूर्व में नेशनल रैली के अध्यक्ष जॉर्डन बार्डेला की पार्टी ने कहा था कि वह सत्ता में आती है तो फ्रांस को नाटो सैन्य कमांड से बाहर कर देंगे। मगर अब बार्डेला इस मामले से पलवट गए हैं।

बार्डेला ने पेरिस के बाहर विलेपिंटे में यूरोसैटरी हथियार व्यापार शो में कहा कि यदि मतदाता उनकी दक्षिणपंथी पार्टी को बहुमत देते हैं, जिससे वह नयी सरकार का नेतृत्व कर सकें, तो वह “अंतरराष्ट्रीय मंच पर फ्रांस द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं पर सवाल उठाने की योजना नहीं बना रहे हैं”। यूक्रेन पर रूस के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण का उल्लेख करते हुए बार्डेला ने कहा , “जब हम युद्ध में हैं तो फ्रांस को नाटो की सैन्य कमान नहीं छोड़नी चाहिए।

ऐसे में नाटो का साथ छोड़ना घातक

बार्डेला ने कहा कि इस वक्त यूरोप युद्ध में है। ऐसे वक्त में नाटो सैन्य कमान को छोड़ना गलत फैसला हो सकता है।  क्योंकि इससे यूरोपीय परिदृश्य में फ्रांस की जिम्मेदारी काफी कमजोर हो जाएगी और जाहिर है, अपने सहयोगियों के संदर्भ में उसकी विश्वसनीयता भी कम हो जाएगी।” यह टिप्पणी 2022 के फ्रांसीसी राष्ट्रपति चुनाव के लिए उनकी पार्टी द्वारा अपने घोषणापत्र में किए गए चुनावी वादे से अलग है। (एपी) 

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