Rohingya Case in ICJ: संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत ICJ ने शुक्रवार को रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के मामले में म्यांमार सरकार को बड़ा झटका दिया है। ICJ ने रोहिंग्या मुसलमानों के कत्लेआम के लिए म्यांमार सरकार के जिम्मेदार होने के आरोपों पर म्यांमार की आपत्तियों को खारिज कर दिया। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी कि ICJ के इस फैसले के साथ ही गाम्बिया की ओर से म्यांमार के शासकों के खिलाफ नरसंहार के आरोपों की सुनवाई आगे जारी रहेगी। हालांकि ऐसे मामलों में फैसला आने में कई साल लग जाते हैं और इस केस में भी ऐसा ही होने की संभावना है।
गाम्बिया की तरफ से म्यांमार पर किया गया केस
रोहिंग्या मुसलमानों के कथित उत्पीड़न पर पूरी दुनिया में आक्रोश देखने को मिला है। इस बीच अफ्रीकी देश गाम्बिया ने विश्व अदालत में मामला दायर कर आरोप लगाया कि म्यांमार नरसंहार संधि का उल्लंघन कर रहा है। इसकी दलील है कि गाम्बिया और म्यांमार दोनों ही संधि के पक्षकार हैं और इस पर दस्तखत करने वाले सभी देशों का यह कर्तव्य है कि वे इसको लागू होना सुनिश्चित करें। इस बीच, इस मामले में फैसला आने से पहले अंतरराष्ट्रीय अदालत के मुख्यालय ‘पीस पैलेस’ के बाहर रोहिंग्या-समर्थक प्रदर्शनकारियों का एक छोटा सा ग्रुप इकट्ठा हुआ।
‘रोहिंग्या मुसलमान पीढ़ियों तक इंतजार नहीं कर सकते’
प्रदर्शनकारियों के हाथों में बैनर भी थे जिन पर लिखा था, ‘रोहिंग्या को न्याय दिलाने की प्रक्रिया तेज हो। नरसंहार में बचे रोहिंग्या मुसलमान पीढ़ियों तक इंतजार नहीं कर सकते।’ आईसीजे को पहले इस बात का फैसला करना था कि क्या इस मामले की सुनवाई उसके दायरे में आती है या नहीं और 2019 में गाम्बिया की ओर से दर्ज कराया गया मामला सुनवाई के भी लायक है या नहीं। मानवाधिकार समूह और यूएन की जांच में इस नरसंहार को 1948 की संधि का उल्लंघन करार दिया जा चुका है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मार्च में कहा था कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों का हिंसक दमन नरसंहार के बराबर है।
‘गाम्बिया इस मामले में अदालत नहीं जा सकता’
म्यांमार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने फरवरी में तर्क दिया था कि इस मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि विश्व अदालत केवल देशों के बीच के मामलों की सुनवाई करती है जबकि रोहिंग्या का मामला इस्लामिक सहयोग संगठन की ओर से गाम्बिया ने दायर किया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि गाम्बिया इस मामले में अदालत नहीं जा सकता क्योंकि यह सीधे तौर पर म्यांमार की घटनाओं से जुड़ा नहीं था और मामला दायर होने से पहले दोनों देशों के बीच कोई कानूनी विवाद भी नहीं था।
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