ब्रिटेन में भी शुरू हुआ BBC की डॉक्यूमेंट्री का विरोध, 29 जनवरी को कई शहरों में प्रदर्शन
भारत ने इस डॉक्यूमेंट्री में कही गई बातों को खारिज करते हुए कहा था कि इसमें पूर्वाग्रह, निष्पक्षता की कमी और औपनिवेशिक मानसिकता स्पष्ट रूप से झलकती है।
लंदन: गुजरात दंगों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आधारित BBC की डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' का ब्रिटेन में ही विरोध शुरू हो गया है। 29 जनवरी यानी कि रविवार को दोपहर 12 बजे ब्रिटेन के 5 बड़े शहरों में बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया है। हिंदू विरोधी और भारत विरोधी करार दी जा रही इस डॉक्यूमेंट्री का विरोध ब्रिटेन की राजधानी लंदन के अलावा ग्लास्गो, न्यूकासल, मैनचेस्टर और बर्मिंगम में किया जाएगा।
भारत ने कहा, ‘यह प्रॉपेगैंडा का एक हिस्सा’
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आधारित BBC की इस डॉक्यूमेंट्री को भारत ‘दुष्प्रचार का एक हिस्सा’ करार दे चुका है। भारत ने कहा था कि इसमें पूर्वाग्रह, निष्पक्षता की कमी और औपनिवेशिक मानसिकता स्पष्ट रूप से झलकती है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने BBC की इस डॉक्यूमेंट्री के बारे में कहा था कि यह एक ‘गलत नैरेटिव’ को आगे बढ़ाने के लिए प्रॉपेगैंडा का एक हिस्सा है। बागची ने कहा था कि यह हमें इस कवायद के उद्देश्य और इसके पीछे के एजेंडा के बारे में सोचने पर मजबूर करता है।
पीएम मोदी के बचाव में उतरे ऋषि सुनक
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बचाव कर चुके हैं। बीबीसी के वृतचित्र में दावा किया गया है कि 2002 के गुजरात दंगों में भारतीय नेता की कथित भूमिका के बारे में ब्रिटिश सरकार को पता था। सुनक से जब यह पूछा गया कि क्या वह इसमें किये गये दावों से सहमत हैं कि ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सीधे तौर पर जिम्मेदार थे’ तो उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तानी मूल के विपक्षी सांसद इमरान हुसैन द्वारा पीएम मोदी के चरित्र चित्रण से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस मुद्द पर ब्रिटिश सरकार की स्थिति स्पष्ट है और यह बिल्कुल भी नहीं बदली है।
कई छात्र संगठन कर रहे डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग
बता दें कि भारत में इस डॉक्यूमेंट्री का बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है, तो कुछ कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में विभिन्न छात्र संगठन इसकी स्क्रीनिंग कर रहे हैं। इससे पहले सरकार ने डॉक्यूमेंट्री का लिंक साझा करने वाले कई यूट्यूब वीडियो और ट्विटर पोस्ट को ब्लॉक करने के निर्देश जारी किए थे। इसके बावजूद कई छात्र संगठन अपने-अपने संस्थानों में इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग कर रहे हैं।
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