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कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र से लगा जोर का झटका, UN ने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को किया खारिज

कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में एक बार फिर शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है। संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान द्वारा उठाए गए इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया। यूएन ने कहा कि इसमें किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की जरूरत नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र। - India TV Hindi Image Source : AP संयुक्त राष्ट्र।

संयुक्त राष्ट्रः संयुक्त राष्ट्र से पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है। पाकिस्तान ने हर बार की तरह कश्मीर मुद्दे को उठाया था। मगर संयुक्त राष्ट्र ने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को खारिज कर दिया है। इससे पाकिस्तान को जोरदार तमाचा लगा है। यूएन प्रमुख एंटोनियो गुटरेस के एक प्रवक्ता ने भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में हुए शिमला समझौते का जिक्र किया, जिसमें किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को खारिज किया गया है। महासचिव के उप-प्रवक्ता फरहान हक ने बुधवार को यहां दैनिक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘कश्मीर पर हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। ’’उन्होंने कहा है कि कश्मीर मुद्दे का अंतिम समाधान संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत शांतिपूर्ण तरीकों से और मानवाधिकारों का पूर्ण सम्मान करते हुए किया जाना चाहिए। 

भारत पाकिस्तान से कहता रहा है कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख देश का ‘‘अभिन्न अंग थे, हैं और हमेशा रहेंगे।’’ भारत द्वारा पांच अगस्त, 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध और खराब हो गए थे। हक ने यह टिप्पणी एक फलस्तीनी पत्रकार द्वारा कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के रुख और अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के पांच साल बाद वहां की स्थिति के संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में की। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से संबंधित मुद्दे का अंतिम समाधान ‘‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार शांतिपूर्ण तरीकों से और मानवाधिकारों का पूर्ण सम्मान करते हुए किया जाना है।’’

क्या था शिमला समझौता?

हक ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र का रुख संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और सुरक्षा परिषद के लागू प्रस्तावों के आधार पर तय होता है। उन्होंने कहा, ‘‘महासचिव भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर 1972 के समझौते को भी ध्यान में रखते हैं जिसे शिमला समझौता के नाम से भी जाना जाता है।’’ शिमला समझौते पर 1972 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फीकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। यह दोनों देशों के बीच एक द्विपक्षीय समझौता है तथा कश्मीर मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार करता है। समझौते में प्रावधान है कि पक्षों के बीच मतभेदों का समाधान शांतिपूर्ण तरीकों और द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से किया जाना चाहिए। भारत बार-बार कहता रहा है कि वह पाकिस्तान के साथ आतंकवाद, शत्रुता और हिंसा से मुक्त वातावरण में सामान्य पड़ोसियों जैसे संबंध चाहता है। (भाषा) 

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